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________________ मोक्षमार्ग की पूर्णता समाधान - नहीं होता; क्योंकि, अगाढ़ आदि मलसहित श्रद्धान के साथ क्षपक और उपशम श्रेणी का चढ़ना नहीं बनता है। 38 २१. (5) शंका : वेदकसम्यग्दर्शन से औपशमिक सम्यग्दर्शन की अधिकता अर्थात् विशेषता कैसे संभव है? समाधान : नहीं; क्योंकि, दर्शनमोहनीय के उदय से उत्पन्न हुई शिथिलता आदि औपशमिक सम्यग्दर्शन में नहीं पाई जाती है, इसलिये वेदकसम्यग्दर्शन से औपशमिक सम्यग्दर्शन में विशेषता सिद्ध हो जाती है। २२. ( 6 ) शंका : क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन को वेदक सम्यग्दर्शन यह संज्ञा कैसे प्राप्त होती है ? समाधान- दर्शनमोहनीय कर्म (सम्यक् प्रकृति) के उदय का वेदन करनेवाले जीव को वेदक कहते हैं। उसके जो सम्यग्दर्शन होता है उसे वेदकसम्यग्दर्शन कहते हैं। २३. (7) शंका : जिनके दर्शनमोहनीय कर्म का उदय विद्यमान है उनके सम्यग्दर्शन कैसे पाया जा सकता है? समाधान: नहीं; क्योंकि, दर्शनमोहनीय की देशघाति प्रकृति के उदय रहने पर भी जीव के स्वभावरूप श्रद्धान की एकदेश की उत्पत्ति होने में कोई विरोध नहीं आता है। २४. (8) शंका : दर्शनमोहनीय की देशघाति प्रकृति को सम्यग्दर्शन यह संज्ञा कैसे दी गई ? समाधान : नहीं, क्योंकि, सम्यग्दर्शन के साथ सहचर संबंध होने के कारण उसको सम्यग्दर्शन संज्ञा के देने में कोई विरोध नहीं आता है। अब औपशमिक सम्यग्दर्शन के गुणस्थानों के प्रतिपादन करने के लिये सूत्र कहते हैं उपशमसम्यग्दृष्टि जीव असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर -
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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