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________________ सम्यक्त्व की पूर्णता ___37 दर्शनमोहनीय के उपशम से कीचड़ के नीचे बैठ जाने से निर्मल जल के समान पदार्थों का, जो निर्मल श्रद्धान होता है वह उपशमसम्यग्दर्शन है।।२१६॥ - अब सामान्य सम्यग्दर्शन और क्षायिक सम्यग्दर्शन के गुणस्थानों के निरूपण करने के लिये सूत्र कहते हैं - सामान्य से सम्यग्दृष्टि और विशेष की अपेक्षा क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक होते हैं।॥१४५॥ १७. (1) शंका : सम्यक्त्व में रहनेवाली वह सामान्य वस्तु क्या है ? समाधान-तीनों ही सम्यग्दर्शनों में जो साधारण धर्म है, वह सामान्य शब्द से यहाँ पर विवक्षित है। १८. (2) शंका :क्षायिक, क्षायोपशमिक और औपशमिकसम्यग्दर्शनों के परस्पर भिन्न-भिन्न होने पर सदृशता क्या वस्तु हो सकती है? . समाधान : नहीं; क्योंकि उन तीनों सम्यग्दर्शन में यथार्थ श्रद्धान के प्रति समानता पाई जाती है। १९. (3) शंका : क्षय, क्षयोपशम और उपशम विशेषण से युक्त यथार्थ श्रद्धानों में समानता कैसे हो सकती है? समाधान : विशेषणों में भेद भले ही रहा आवे, परन्तु इससे यथार्थ श्रद्धारूप विशेष्य में भेद नहीं पड़ता है। शेष सूत्र का अर्थ सुगम है।। अब वेदकसम्यग्दर्शन के गुणस्थानों की संख्या के प्रतिपादन करने के लिये सूत्र कहते हैं वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक होते हैं।146॥ २०. (4) शंका : ऊपर के आठवें आदि गुणस्थानों में वेदकसम्यग्दर्शन क्यों नहीं होता है?
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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