SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यक्चारित्र की परिभाषाएँ का चारित्र है। का कथन करता है अर्थात् उपदेश आदि देता है और आठ प्रकार की शुद्धियों में निष्ठ रहता है, वह उसका सराग चारित्र है । (बृहद् नयचक्र, गाथा - ३३४, पृष्ठ- १६७) ४१. शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के योगों से निवृत्ति, वीतराग साधु (बृहद् नयचक्र, गाथा - ३७८, पृष्ठ- १९१) ४२. आत्मा द्वारा संवेद्य जो निराकुलताजनक सुख सहज ही आता है, वह निश्चयात्मक चारित्र है। (मोक्ष पंचाशत्, श्लोक - ४५ ) ४३. निश्चयनय से विविक्त चेतनध्यान- निश्चय चारित्र मोक्ष का कारण है । (योगसार प्राभृत (अमितगति) अधिकार- ८, श्लोक-४५१) ४४. हिंसा, असत्य, चोरी तथा मैथुन सेवा और परिग्रह इन पाँचों पापों की प्रणालियों से विरक्त होना चारित्र है । 205 (रत्नकरण्ड श्रावकाचार, श्लोक - ४९, पृष्ठ- ८८) ४५. समस्त पापयुक्त मन, वचन, काय के त्याग से सम्पूर्ण कषायों से रहित अतएव निर्मल, परपदार्थों से विरक्ततारूप चारित्र होता है। इसलिए वह चारित्र आत्मा का स्वभाव है। ( पुरुषार्थसिद्धयुपाय, श्लोक - ३९, पृष्ठ-४९) ४६. मन से, वचन से, काय से, कृत कारित अनुमोदना के द्वारा जो पापरूप क्रियाओं का त्याग है, उसको सम्यक्चारित्र कहते हैं । (तत्त्वानुशासन, श्लोक - २७) ४७. व्रतादि का आचरण करना व्यवहार चारित्र है। ( योगसार प्राभृत, अधिकार -८, गाथा- ४५१) ४८. दर्शनाचार और चारित्राचार लक्षणवाला चारित्र दो प्रकार का है। (जैन सिद्धान्त प्रवेशिका / २२३) ४९. शुद्धात्मानुभवन से अविनाभावी विशेष चारित्र को स्वरूपाचरणचारित्र कहते हैं । (जैन सिद्धान्त प्रवेशिका प्रश्नोत्तर ११३)
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy