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________________ 194 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्ज्ञान व्रत, तप, गुप्ति व संयम को प्रकाशित करता है, तथा तीनों के संयोगरूप जिनोपदिष्ट मोक्ष को प्रकाशित करता है। (भगवती आराधना, गाथा-७६९) २४. जिस मार्ग में अज्ञानी चलते हैं उसी मार्ग में विद्वद्जन चलते हैं; परन्तु अज्ञानी तो अपनी आत्मा को बाँध लेता है और तत्त्वज्ञानी बन्धरहित हो जाता है, यह ज्ञान का माहात्म्य है। (ज्ञानार्णव अधिकार-७, श्लोक-२१, पृष्ठ-१६७) २५. सामान्य तथा विशेष द्रव्य सम्बन्धी अविरुद्धज्ञान ही सम्यक्त्व की सिद्धि करता है। उससे विपरीत ज्ञान नहीं। (बृहदनयचक्र, गाथा-२४८, पृष्ठ-१२५) २६. जिससे वस्तु का यथार्थ स्वरूप जाना जाय, जिससे मन का व्यापार रुक जाय, जिससे आत्मा विशुद्ध हो, जिनशासन में उसे ही ज्ञान कहा गया है। (मूलाराधना, गाथा-२६७) २७. जिससे राग से विरक्त हो, जिससे श्रेयस मार्ग में रक्त हो, जिससे सर्व प्राणियों में मैत्री प्रवर्ते, वही जिनमत में ज्ञान कहा गया है। __(मूलाराधना, गाथा-२६८) २८. जबतक इस संसाररूपी वन में सम्यग्ज्ञानरूपी सूर्य उदित होकर संसार भयदायक अज्ञानान्धकार का उच्छेद नहीं करता तब तक ही मोहान्ध प्राणी निज स्वरूप से च्युत हुए गिरते-पड़ते चलते हैं। (ज्ञानार्णव अधिकार-७, श्लोक-२३, पृष्ठ-१६८) २९. जो कोई प्राणी गुरुपदेश से अथवा शास्त्राभ्यास से या स्वात्मानुभव से स्व व पर के भेद को जानता है, वही पुरुष सदा मोक्षसुख को . जानता है। (इष्टोपदेश, श्लोक-३३, पृष्ठ-३८) ३०. जिनेन्द्र भगवान ने निजद्रव्य को जानने के लिए ही अन्य छह द्रव्यों का कथन किया है। अतः मात्र उन पररूप छह द्रव्यों का जानना सम्यग्ज्ञान नहीं है। (बृहद्नयचक्र, गाथा-२८४, पृष्ठ-१४०)
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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