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________________ 176 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन - ४. प्रश्न-जो सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान में भेद नहीं है, तो उन दोनों गुणों के घातक ज्ञानावरणीय व मिथ्यात्व ये दो कर्म कैसे कहे गये? उत्तर - भेदनय से आवरण का भेद है और अभेद की विवक्षा में कर्मत्व के प्रति जो दो आवरण हैं, उन दोनों को एक ही जानना चाहिए। (द्रव्यसंग्रह, गाथा-४, पृष्ठ-२१९) सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान यद्यपि एक साथ प्रगट होते हैं, तथापि वे दोनों भिन्न-भिन्न गुणों की पर्यायें हैं। सम्यग्दर्शन श्रद्धागुण की शुद्धपर्याय है और सम्यग्ज्ञान ज्ञानगुण की शुद्ध पर्याय है। सम्यग्दर्शन का लक्षण विपरीत अभिप्राय रहित तत्त्वार्थश्रद्धा है और सम्यग्ज्ञान का लक्षण संशयांदि दोष रहित स्व-पर का यथार्थतया निर्णय है। सम्यग्दर्शन निमित्त कारण है और सम्यग्ज्ञान नैमित्तिक कार्य है। (माला-चौथी दाल, छन्द-२) दर्शन शब्द का अर्थ श्रद्धा इष्ट है .. ५. प्रश्न-दर्शन शब्द 'दृशि' धातु से बना है जिसका अर्थ आलोक है। अतः इससे श्रद्धानरूप अर्थ का ज्ञान नहीं हो सकता। उत्तर - धातुओं के अनेक अर्थ होते हैं, अतः 'दृशि' धातु का श्रद्धानरूप अर्थ करने में कोई दोष नहीं है। ____६. प्रश्न - यहाँ (अर्थात् तत्त्वार्थ श्रद्धान सम्यग् है' - इस प्रकरण में) दृशि धातु का प्रसिद्ध अर्थ क्यों छोड़ दिया? उत्तर - मोक्षमार्ग का प्रकरण होने से - तत्त्वार्थों का श्रद्धानरूप जो आत्मा का परिणाम होता है वह तो मोक्ष का साधन बन जाता है; क्योंकि वह भव्यों के ही पाया जाता है, किन्तु आलोक, चक्षु आदि के
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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