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________________ सम्यक्त्व के विभिन्न लक्षणों का समन्वय 171 निमित्त से होता है, जो साधारण रूप से सब संसारी जीवों के पाय जाता है; अतः उसे मोक्षमार्ग मानना युक्त नहीं। (सर्वार्थसिद्धि अध्याय-१, सूत्र-२,११,७) सम्यक्त्व के विभिल्ल लक्षणों का समन्वय ७. फिर प्रश्न उत्पन्न होता है कि यहाँ सातों तत्त्वों के श्रद्धान का नियम कहते हो, सो नहीं बनता। क्योंकि कहीं पर से भिन्न अपने श्रद्धान ही को सम्यक्त्व कहते हैं। समयसार' में 'एकत्वे नियतस्य' इत्यादि कलश है - उसमें ऐसा कहा है कि इस आत्मा का परद्रव्य से भिन्न अवलोकन वही नियम से सम्यग्दर्शन है; इसलिये नवतत्त्व की संतति को छोड़कर हमारे यह एक आत्मा ही होओ। तथा कहीं एक आत्मा के निश्चय ही को सम्यक्त्व कहते हैं। पुरुषार्थसिद्धयुपाय' में 'दर्शनमात्मविनिश्चितिः' ऐसा पद है, सो उसका यही अर्थ है। इसलिये जीव-अजीव ही का व केवल जीव ही का श्रद्धान होने पर सम्यक्त्व होता है, सातों के श्रद्धान का नियम होता तो ऐसा किसलिये लिखते? समाधान - पर से भिन्न अपना श्रद्धान होता है, सो आम्रवादिक के श्रद्धान से रहित होता है या सहित होता है? यदि रहित होता है, तो मोक्ष के श्रद्धान बिना किस प्रयोजन के अर्थ ऐसा उपाय करता है? ___ संवर-निर्जरा के श्रद्धान बिना रागादिक रहित होकर स्वरूप में उपयोग लगाने का किसलिये उद्यम रखता है? . १. एकत्वे नियतस्यशुद्धनयतो व्याप्तुर्यदस्यात्मनः, पूर्णज्ञानघनस्य दर्शनमिह द्रव्यान्तरेभ्यः पृथक्ः। सम्यग्दर्शनमेतदेव नियमादात्माच तावानयम्, तन्मुक्त्वा नवतत्त्वसन्ततिमिमामात्मायमेकोऽस्तु नः॥६।। (समयसार कलश) २. दर्शनमात्मविनिश्चितिरात्मपरिज्ञानमिष्यते बोधः। स्थितिरात्मनि चारित्रं कुत एतेभ्यो भवति बन्धः॥
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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