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________________ 170 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन २६. अपार संसार समुद्र तारनेवाला और जिसमें विपदाओं को स्थान नहीं, ऐसा यह सम्यग्दर्शन, जिसने अपने वश किया है; उस पुरुष ने कोई अलभ्य सम्पदा ही वश करी है। (अमितगतिश्रावकाचार अधिकार-२, श्लोक-८३) २७. अन्य गुणों से हीन भी सम्यग्दृष्टि सर्वमान्य है। क्या बिना शान पर चढ़ा रत्न शोभा को प्राप्त नहीं होता है। (आराधना सार-२,६८) २८. इन तीनों (सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र) में पहले समस्त प्रकार से सम्यग्दर्शन भले प्रकार अंगीकार करना चाहिए, क्योंकि इसके अस्तित्व होते हुए सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र होता है। (पुरुषार्थसिद्धियुपाय, श्लोक-२१) २९. सम्यग्दर्शन के होते ही जो भूतपूर्व ज्ञान व चारित्र था, वह सम्यक् विशेषण सहित हो जाता है। अतः सम्यग्दर्शन अभूतपूर्व के समान ही सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र को उत्पन्न करता है, ऐसा कहा जाता है। (पंचाध्यायी उत्तरार्द्ध, ७६८) ३०. शुद्ध सम्यग्दृष्टि जीव कान्ति, प्रताप, विद्या, वीर्य, यशोवृद्धि, विजय, विभववान, उच्चकुली, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के साधक तथा मनुष्यों में शिरोमणि होते हैं। (रत्नकरण्ड श्रावकाचार, श्लोक-३६ ३१. तीन काल और तीन जगत में जीवों का सम्यक्त्व के समान कुछ भी कल्याणकारी नहीं है, मिथ्यात्व के समान अकल्याणकारी नहीं है। (रत्नकरण्ड श्रावकाचार, श्लोक-३४) ३२. गणधरादि देव, सम्यग्दर्शन सहित चाण्डाल को भी भस्म से ढकी हुई चिनगारी के समान देव कहते हैं। (रत्नकरण्ड श्रावकाचार, श्लोक-२८) ३३. सम्यग्दर्शन का नाश करनेवाले दोषों का त्याग करने में ही सम्यग्दर्शन की उज्ज्वलता है। (रत्नकरण्ड श्रावकाचार, पृष्ठ-२२८)
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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