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________________ मोक्षमार्ग में सम्यग्दर्शन ही प्रधान है 169 चारित्र, वीर्य व तप इन चार आराधनाओं में एक सम्यक्त्व ही प्रधान है। (भगवती आराधना मूल पृष्ठ-८, गाथा-७४२, पेज-३१४) २०. दर्शनभष्ट ही भ्रष्ट है, चारित्रभ्रष्ट वास्तव में भ्रष्ट नहीं होता, क्योंकि जिसका सम्यक्त्व नहीं छूटा है - ऐसा चारित्रभ्रष्ट संसार में पतन नहीं करता। (भगवती आराधाना, गाथा-७४५, पृष्ठ-३१४) २१. जिस सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान तो मिथ्याज्ञान और चारित्र मिथ्याचारित्र हुआ करता है, वह सुख का स्थानभूत, मोक्षरूपी वृक्ष का अद्वितीय बीजस्वरूप तथा समस्त दोषों से रहित सम्यग्दर्शन जयवन्त होता है। उसके बिना प्राप्त हुआ भी मनुष्य जन्म अप्राप्त हुए के समान है। (पद्मनंदिपंचविंशतिका, अध्याय-१, श्लोक-७७) २२. सत्पुरुषों ने सम्यग्दर्शन को चारित्र व ज्ञान का बीज, यम व प्रशम का जीवन तथा तप व स्वाध्याय का आश्रय माना है। (ज्ञानार्णव अधिकार, ६,५४, पृष्ठ-९५) २३. हे भव्यों! तुम सम्यग्दर्शनरूपी अमृत का पान करो; क्योंकि, यह सम्यग्दर्शन अतुल सुखनिधान है, समस्त कल्याणों का बीज है, संसारसागर तरने को जहाज है। भव्यजीव ही इसका पात्र है, पापवृक्ष को काटने के लिए कुठार है, पुण्यतीर्थों में प्रधान है तथा विपक्षी जो मिथ्यादर्शन, उसको जीतने वाला है। - (ज्ञानार्णव अधिकार-६, श्लोक-५९, पृष्ठ-९६) २४. यह सम्यग्दर्शन महारत्न अर्थात् समस्त लोक का आभूषण है और मोक्ष होने पर्यन्त आत्मा को कल्याण देने में चतुर है। (ज्ञानार्णव अधिकार-६, श्लोक-५३, पृष्ठ-९५) २५. मिथ्यात्व से ग्रस्त चित्तवाला मनुष्य भी पशु के समान है। और सम्यक्त्व से व्यक्त चित्तवाला पशु भी मनुष्य के समान है। (सागारधर्मामृत अधिकार-१, श्लोक-४)
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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