SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 168 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन ११. श्रेय व अश्रेय को जानकर वह पुरुष, मिथ्यात्व को उड़ाकर तथा सम्यक् स्वभावयुक्त होकर अभ्युदय व तीर्थंकर आदि पदों को प्राप्त होता हुआ पीछे निर्वाण प्राप्त करता है। . (दर्शनपाहुइ, गाथा-१६) १२. जिस प्रकार ताराओं में चन्द्र और पशुओं में सिंह प्रधान है, उसी प्रकार मुनि व श्रावक दोनों प्रकार के धर्मों में सम्यक्त्व प्रधान है। (भावपाहुइ, गाथा-१४४) १३. सम्यक्त्व का आचरण करनेवाले धीर पुरुष संख्यात व असंख्यातगुणी कर्म निर्जरा करते हैं तथा संसारी जीवों की अमर्यादारूप जो सर्व दुःख, उनका नाश करते हैं। - (चारित्रपाहुइ, गाथा-२०) १४. सम्यग्दर्शन सब रत्नों में महारत्न है, सब योगों में उत्तम योग है, सब ऋद्धियों में महा-ऋद्धि है। अधिक क्या, सम्यक्त्व सब सिद्धियों को करनेवाला है। (कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा-३२५) १५. सम्यक्त्व गुण से सहित जीव, देवों के इन्द्रों से तथा चक्रवर्ती आदि से वन्दनीय होता है, और व्रत रहित होता हुआ भी नाना प्रकार के उत्तम स्वर्ग सुख को पाता है। (कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा-३२६) १६. सम्यक्त्व से तो ज्ञान सम्यक् होता है। १७. आगमज्ञान, तत्त्वार्थश्रद्धान और संयतत्त्व की युगपत्ता होनेपर भी आत्मज्ञान को ही मोक्षमार्ग का साधकतम सम्मत करना। १८. आत्मज्ञानशून्य आगमज्ञान, तत्त्वार्थश्रद्धान, संयतत्त्व का युगपत्पना भी अकिंचित्कर है। (प्रवचनसार तत्वप्रदीपिका, गाशा-२३९, पृष्ठ-४६७) १९. नगर में जिसप्रकार द्वार प्रधान है, मुख में जिस प्रकार चक्षु प्रधान है तथा वृक्ष में जिस प्रकार मूल प्रधान है, उसी प्रकार ज्ञान,
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy