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मोक्षमार्ग में सम्यग्दर्शन ही प्रधान है ३. सम्यग्दर्शन को यह जीव जब प्राप्त हो जाता है, तब परम सुखी हो
जाता है और जब तक उसे प्राप्त नहीं करता, तब तक दुःखी बना रहता है।
(रयणसार, गाथा-१५८) ४. सम्यग्दर्शन समस्त रत्नों में सारभूत रत्न है और मोक्षरूपी वृक्ष का . मूल है।
. (रयणसार गाथा-४) ५. जिसप्रकार भाग्यशाली मनुष्य कामधेनु, कल्पवृक्ष, चिन्तामणिरत्न
और रसायन को प्राप्त कर मनोवांछित उत्तम सुख को प्राप्त होता है। उसीप्रकार सम्यग्दर्शन से भव्य जीवों को सर्व प्रकार के सर्वोत्कृष्ट सुख व समस्त प्रकार के भोगोपभोग स्वयमेव प्राप्त होते हैं।
. (रयणसार, गाथा-५४) ६. सम्यक्त्व के बिना नियम से सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र नहीं होते हैं। रत्नत्रय में एक यह सम्यक्त्व गुण ही प्रशंसनीय है।
(रयणसार, गाथा-४७) ७. जैसे बाण रहित वेधक मनुष्य के अभ्यास से रहित होता हुआ निशाने को प्राप्त नहीं करता है, वैसे ही अज्ञानी मिथ्यादृष्टि मोक्षमार्ग के लक्ष्यभूत परमात्म तत्त्व को प्राप्त नहीं करता है।
(बोधपाहुड़, गाथा-२१) ८. जिनप्रणीत सम्यग्दर्शन को अन्तरंग भावों से धारण करो;
क्योंकि यह सर्व गुणों में और रत्नत्रय में सार है तथा मोक्षमन्दिर की प्रथम सीढ़ी है।
(दर्शनपाहुड़, गाथा-२१) ९. दर्शनभ्रष्ट ही वास्तव में भ्रष्ट है; क्योंकि दर्शनभ्रष्ट को निर्वाण नहीं
होता। चारित्र भष्ट को मोक्ष हो जाता है, पर दर्शनभष्ट को नहीं होता।
(दर्शनपाहुड़गाथा-३) १०. उन दोनों (सम्यक्त्व, सम्यग्ज्ञान) से सर्व पदार्थों या तत्त्वों की
उपलब्धि होती है। पदार्थों की उपलब्धि होने पर श्रेय व अश्रेय का ज्ञान होता है।
(दर्शनपाहुइ, गाथा-१५)