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मोक्षमार्ग में सम्यग्दर्शन ही प्रधान है। ३४. सर्वप्रकार के प्रयत्न से सम्यग्दर्शन उत्तम रीति से अंगीकार करना
चाहिये; क्योंकि सम्यग्दर्शन के होने पर ही ज्ञान और चारित्र
सम्यक्पने को प्राप्त होते हैं। (रत्नकरण्ड श्रावकाचार, पृष्ठ-७९) ३५. सम्यग्दर्शन से तो मिथ्यात्व नाम के आस्रव का द्वार रुक जाता है।
(रत्नकरण्ड श्रावकाचार, पृष्ठ-४०२) ३६. सत्संगति मिलने पर भी सम्यग्दर्शन प्राप्त होना दुर्लभ है।
(रत्नकरण्ड श्रावकाचार, पृष्ठ-४०६) ३७. जो अपने सम्यग्दर्शनादि स्वभाव को आप ही धारण करता है; वही जीव संसार समुद्र से पार होता है।
(समयसार नाटक, छन्द-८, पृष्ठ-८) ३८. सम्यग्दर्शन प्रगट होने पर व्यवहार की तल्लीनता नहीं रहती। सम्यग्दर्शन प्रगट होने पर चंचल चित्त को विश्राम मिलता है।
(समयसार नाटक, पृष्ठ-२११) ३९. यदि यह जीव वैमानिक देव हुआ तो भी सम्यग्दर्शन बिना दुख प्राप्त करता है।
(छहढाला-प्रथम डाल, छन्द-१७) ४०. जीव को निश्चय सम्यग्दर्शन के साथ ही सम्यक्भावश्रुतज्ञान होता है।
(छहडाला-तीसरी डाल, छन्द-१) ४१. जो बुद्धिमान पुरुष पच्चीस दोष रहित तथा आठ निःशंकादि गुणों
से सहित सम्यग्दर्शन धारण करते हैं, उन्हें अप्रत्याख्यानावरणीय चारित्रमोहनीय कर्म के उदयवश किंचित् भी संयम नहीं है; तथापि देवों के स्वामी इन्द्रादि उनकी पूजा (आदर) करते हैं।
(छहडाला-तीसरी डाल, छन्द-१५) ४२. यह सम्यग्दर्शन मोक्षरूपी महल की प्रथम सीढ़ी है, इस सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान और चारित्र सम्यक्पने को प्राप्त नहीं होते।
(छहडाला-तीसरी डाल, छन्द-१७)