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________________ 156 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यक्चारित्र एकाग्र करने के समय आवे, उसे व्यवहार धर्मध्यान कहते हैं। पश्चात् वह विकल्प भी छूटकर निजस्वरूप में उपयोग जमे तब वास्तविक धर्मध्यान कहा जाये । इस भाँति चार प्रकार के सविकल्प चिन्तवन को व्यवहार से धर्मध्यान कहा, परमार्थ धर्मध्यान तो निर्विकल्प है। परमार्थ धर्मध्यान वीतराग है और वही मोक्ष का साधक है। ( आत्मधर्म : सितम्बर १९७७, पृष्ठ- २८) २३. प्रश्न - 'परमात्मप्रकाश' में परमात्मा के ध्यान करने को धर्मध्यान कहा है - वह कैसे ? उत्तर - परमात्मा का ध्यान करने को कहकर अपने ही आत्मा का ध्यान करने को कहा है, अपने से भिन्न परमात्मा का नहीं । परमात्मा के समान ही अपना स्वभाव परिपूर्ण रागादि रहित है, उसको पहिचानकर उसका ही ध्यान करना - यही परमार्थ से परमात्मा का ध्यान है । इसके अतिरिक्त अरहंत व सिद्ध का लक्ष्य करना सच्चा धर्मध्यान नहीं है; किन्तु राग है और परमार्थ से राग तो आर्त्तध्यान है; अतः उससे कभी भी धर्मध्यान नहीं हो सकता। ( आत्मधर्म : मार्च १९८३, पृष्ठ- २५ ) २४. प्रश्न - स्थिरता ( चारित्र) को निकट का उपाय क्यों कहा है ? उत्तर - क्योंकि सम्यग्दर्शन -३ -ज्ञान भी मोक्ष का उपाय है, परन्तु सम्यग्दर्शन - ज्ञान पूर्वक स्थिरता मोक्ष का साक्षात् उपाय है; इसीकारण स्थिरता को मोक्ष का निकट उपाय कहा है। सम्यग्दर्शन - ज्ञान के पश्चात् भी स्वरूप में स्थिरता के बिना मोक्ष प्राप्त नहीं होता । ( वीतराग - विज्ञान : अप्रेल १९८४, पृष्ठ- २७) २५. प्रश्न – स्वामीकार्तिकेयानुप्रेक्षा में कहा है कि जिनवचन की भावना के लिये इन भावनाओं की रचना की है। इसका क्या अर्थ है ? -
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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