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________________ 157 श्रीकानजीस्वामी के उद्गार उत्तर - पहले 'जिनवचन' क्या है - यह निर्णय करना पड़ेगा। जिनवचन में कहे गये, द्रव्य-गुण-पर्याय - इन तीनों का स्वरूप जैसा है वैसा समझकर और प्रतीति करके धर्मी जीव इन भावनाओं को भाता है, उसमें उसकी वीतरागी श्रद्धा, वीतरागी ज्ञान और वीतरागी आनंद का अंश प्रकट होता है। जिनवचन की भावना के अर्थ ये भावनायें रची हैं अर्थात् जिनवचनानुसार वस्तुस्वरूप का भान जिसे हुआ हो, उसे ही ये भावनायें होती हैं। जिनवचन से विरुद्ध कहनेवाले कुदेव, कुगुरु, कुशास्त्र को जो मानता हो; उसको बारह भावनाओं का चिन्तवन सच्चा नहीं होता। सम्यग्दर्शन बिना भावनायें यथार्थ नहीं होती। (वीतराग-विज्ञान : जनवरी १९८४, पृष्ठ-२८) ___ २६. प्रश्न -संसार भावना का अर्थ क्या संसार की भावना करना उत्तर- नहीं; संसार भावना में संसार की भावना या रुचि नहीं है। रुचि और भावना तो स्वभाव की ही है। धर्मीजीव अपने स्वभाव की दृष्टि रखकर संसार का स्वरूप चिन्तवन करके वैराग्य की वृद्धि करता है - इसका नाम संसार भावना है। अन्तर्तत्त्व के भान बिना द्वादश भावना यथार्थ नहीं होती। (वीतराग-विज्ञान : जनवरी १९८४, पृष्ठ-२८) २७. प्रश्न - मोक्ष का कारण समभाव है। वह समभाव करें तो मोक्ष होगा न ? उत्तर - समभाव अर्थात् वीतरागता। यह वीतरागता द्रव्य को पकड़े तब हो। द्रव्य के आश्रय बिना वीतरागता नहीं होती। समभाव का कारण वीतरागस्वभावी भगवान आत्मा है। उसका आश्रय करने और पर का आश्रय छोड़ने से मोक्ष होता है। यह अति संक्षिप्त कथन है। (आत्मधर्म : जुलाई १९८१, पृष्ठ-२०)
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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