SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 154 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यक्चारित्र - उत्तर -स्वभाव के साथ सम्बन्ध जोड़ना और पर के साथ सम्बन्ध तोड़ना अर्थात् जैसा अपना स्वभाव है, वैसा जानकर श्रद्धा-ज्ञान में स्वीकार करना दर्शन व ज्ञान का आचरण है, तत्पश्चात् उसी स्वभाव में उपयोग की एकाग्रता करना चारित्र का आचरण है।इसी आचरण से धर्म होता है, अन्य कोई धर्म का आचरण नहीं है। . (वीतराग-विज्ञान : जनवरी १९८४, पृष्ठ-२९) १९. प्रश्न-सामायिक कितने प्रकार की है? उनमें से चतुर्थगुणस्थान में कौन-कौन सी है? उत्तर - सामायिक चार प्रकार की है। ज्ञान सामायिक, दर्शन सामायिक, देशविरत सामायिक और सर्वविरत सामायिक । अपने पूर्ण ज्ञान स्वभाव का आदर करना और विकार का आदर नहीं करना ज्ञान-दर्शनरूप सामायिक है। पहले मिथ्यात्व के कारण - ऐसा मानता था कि 'पुण्य भला और पाप बुरा', 'अमुक से लाभ और अमुक से हानि', तब श्रद्धा और ज्ञान में विषमभाव था। अब कोई भी परपदार्थ मुझे लाभ-हानिकारक नहीं, पुण्य-पाप दोनों ही मेरे स्वरूप नहीं-ऐसी स्वभावाश्रित सम्यक् श्रद्धा होने पर ज्ञान-दर्शन में समभाव प्रगट होना श्रद्धा-ज्ञानरूप सामायिक है। यह सामायिक आरम्भ -परिग्रह में रहने वाले सम्यग्दृष्टि के भी होती है और सदा विद्यमान है, मात्र दो घड़ी की ही नहीं। - स्वभाव की अधिक लीनता होने पर देशविरतिरूप सामायिक श्रावक को और विशेष अधिक लीनता होने पर सर्वविरतिरूप सामायिक मुनिदशा में होती है। (वीतराग-विज्ञान : दिसम्बर १९८३, पृष्ठ-२७) २०. प्रश्न - क्या अकेला चारित्र ही ध्यान है अथवा सम्यग्दर्शनसम्यग्ज्ञान भी ध्यान के प्रकार हैं?
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy