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मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यक्चारित्र १३. प्रश्न - व्रत-तप आदि सब विकल्प हैं तो इन्हें करना या नहीं ?
उत्तर - करने न करने की बात नहीं। सम्यग्दर्शन के बाद पाँचवें गुणस्थान में जो विकल्प आते हैं, वे शुभ राग हैं, धर्म नहीं; ऐसा ज्ञानी जानते हैं। मिथ्यादृष्टि को ऐसे विकल्प आने पर शुभराग से पुण्य बँधता है - पर वह उस राग से धर्म मानता है, उसे अपना स्वरूप मानता है,
अतः मिथ्यात्व भी बंधता है। ___शुभ छोड़कर अशुभ में जाने की बात नहीं है; परन्तु शुभराग अपना स्वरूप नहीं - ऐसा जानकर शुद्धता प्रगट करने की बात है।
(आत्मधर्म : मई १९७७, पृष्ठ-२५) १४. प्रश्न - सच्चा समताभाव किसे होता है ?
उत्तर - स्व-पर तत्त्व भिन्न-भिन्न हैं - ऐसा स्वतंत्र वस्तुस्वरूप समझे नहीं और वस्तु को पराधीन माने, उसे सच्चा समताभाव नहीं हो . सकता।
वस्तुस्वरूप को पराधीन मानने की मान्यता में ही अनन्त विषमभाव पड़ा है। भले बाहर से क्रोधी न दिखाई पड़े और मन्दकषाय रखता हो, तथापि जहाँ वस्तुस्वरूप का भान नहीं है, वहाँ समता का अंश भी नहीं होता। आत्मा के ज्ञानस्वभाव का अनादर ही महान विषमभाव है। ___ प्रत्येक तत्त्व स्वतन्त्र है, कोई किसी के आधीन नहीं। मेरा स्वभाव तो मात्र सबको जानने का है - इसप्रकार वस्तु-स्वातन्त्र्य को जानकर अपने ज्ञानस्वभाव का आदर करना ही सच्चा समभाव है।
. (वीतराग-विज्ञान : नवम्बर १९८३, पृष्ठ-२५-२६) १५. प्रश्न - इस धर्म में कहीं त्याग या ग्रहण करने की बात तो आई ही नहीं ?