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मोक्षमार्ग की पूर्णताः सम्यग्ज्ञान - २४. प्रश्न - परसत्तावलम्बी ज्ञान शुद्धात्मा का निर्णय करता है, क्या वह ज्ञान भी व्यर्थ है ?
उत्तर - परोन्मुख ज्ञान से सविकल्प निर्णय होता है, वह वास्तव में शुद्धात्मा का निर्णय नहीं कहा जाता।
स्वसन्मुख होकर निर्विकल्पता में जो निर्णय होता है, वही शुद्धात्मा का सच्चा निर्णय है।
(आत्मधर्म : जुलाई १९७६, पृष्ठ-२१) २५. प्रश्न - जो सविकल्प ज्ञान किनारे तक ले जाता है, उसको व्यर्थ क्यों कहा जाता है?
उत्तर - सविकल्प ज्ञान से शुद्धात्मा का अनुभव नहीं होता। स्वसन्मुख ज्ञान से शुद्धात्मा का स्वानुभवपूर्वक निर्णय होता है।
(आत्मधर्म : जुलाई १९७६, पृष्ठ-२१) २६. प्रश्न - व्यवस्थित जानना ज्ञान का स्वभाव है क्या?
उत्तर - आत्मा ज्ञानस्वरूप है और उसकी केवलज्ञानादि पाँच पर्यायें हैं। केवलज्ञान अपने गुण के व्यवस्थित कार्य को जानता है। उसी प्रकार मतिज्ञान भी अपने गुण के व्यवस्थित कार्य को जानता है, पर के कार्य को भी व्यवस्थित जानता है। श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान भी अपने-अपने गुण के व्यवस्थित कार्य को तथा पर के कार्य को भी व्यवस्थित जानते हैं। व्यवस्थित जानना उनका स्वभाव है।
आत्मा अकेला ज्ञानस्वरूप है अर्थात् उसकी पर्याय, गुण और द्रव्य-बस, मात्र ज्ञाता ही हैं, फेरफार करनेवाले नहीं। अपने में भी कोई फेर-फार करना नहीं है। जैसा व्यवस्थित कार्य होता है, वैसा जानता है। अहाहा! देखो तो सही! वस्तु ही ऐसी है। अन्दर में तो खूब गम्भीरता से चलता है, परन्तु कथन में तो......।
. (आत्मधर्म : अगस्त १९७९, पृष्ठ-२६)