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________________ श्रीकानजी स्वामी के उद्गार - 147 २७. प्रश्न - वर्तमान पर्याय में अधूरा ज्ञान है, उस अधूरे ज्ञान में पूरे ज्ञानस्वभाव का ज्ञान कैसे हो? उत्तर - जैसे आँख छोटी होने पर भी सारे शरीर को जान लेती है, उसीप्रकार पर्याय में ज्ञान का विकास अल्प होने पर भी यदि वह ज्ञान स्व-सन्मुख हो तो पूर्णज्ञानस्वरूपी शुद्धात्मा को स्वसंवेदन से जान लेता है। केवलज्ञान होने से पहले अपूर्णज्ञान में भी स्वसंवेदन प्रत्यक्ष से पूर्ण-ज्ञानस्वरूपी आत्मा का निःसंदेह निर्णय होता है। __जैसे शक्कर की अल्पमात्रा से सम्पूर्ण शक्कर के स्वाद का निर्णय हो जाता है, वैसे ही ज्ञान की अल्पपर्याय को अन्तर्मुख करने पर उसमें पूर्ण ज्ञानस्वभाव का निर्णय हो जाता है। पूर्णज्ञान होने पर ही पूर्ण आत्मा को जाना जाय - ऐसी बात नहीं है। यदि अपूर्णज्ञान पूर्ण आत्मा को न जान सके, तो कभी भी सम्यग्ज्ञान ही नहीं हो सके; इसलिए अपूर्णज्ञान भी स्वसन्मुख होकर पूर्ण आत्मा को जान लेता है। (वीतराग-विज्ञान : सितम्बर १९८३, पृष्ठ-२२) २८. प्रश्न - उपयोग का पर से हनन नहीं होता - इसका क्या अर्थ? उत्तर - प्रवचनसार गाथा १७२ में अलिंगग्रहण के नौवें बोल में उपयोग का पर से हनन नहीं होता - ऐसी बात आई है। हनन अर्थात् नाश। मुनि को चारित्रदशा होती है और वे स्वर्ग में जाते हैं, वहाँ चारित्रदशा तो नाश को प्राप्त हो जाती है तो भी स्व के लक्ष्य से जो उपयोग हुआ है, वह नाश नहीं होता। स्व के लक्ष्य से उपयोग हुआ है। वह तो अप्रतिहित हुआ है - नाश नहीं होता। . (आत्मधर्म : सितम्बर १९७८, पृष्ठ-२६) N .
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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