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________________ 143 श्रीकानजीस्वामी के उद्गार १७. प्रश्न - स्मरण होता है अर्थात् निर्विकल्पदशा हो जाती है? .. उत्तर - स्मरण ही निर्विकल्पता है। निर्विकल्प स्मरण में अतीन्द्रिय आनन्द की माला फिरती है। इस निर्विकल्प स्मरण से मोह छूटता है; विकल्प से तो मोह नहीं छूट सकता। (आत्मधर्म : नवम्बर १९७७, पृष्ठ-२४) - १८. प्रश्न - सामान्य ज्ञान और विशेष ज्ञान में भेद और उनका फल बतलाते हुये स्पष्ट कीजिये कि सम्यग्दृष्टि इनमें से अपना ज्ञान किसे मानता है? उत्तर-विषयों में एकाकार हुये ज्ञान को विशेषज्ञान अर्थात् मिथ्याज्ञान कहते हैं और उनका लक्ष्य छोड़कर अकेले सामान्यज्ञान-स्वभाव के अवलम्बन से उत्पन्न हुये ज्ञान को सामान्यज्ञान अर्थात् सम्यग्ज्ञान कहते हैं। ज्ञानस्वभाव में एकाकार होकर प्रगट हुये ज्ञान को सामान्यज्ञानवीतरागी ज्ञान कहते हैं, उसी को जैनशासन अथवा आत्मानुभूति कहते हैं। सामान्यज्ञान में आत्मा के आनन्द का स्वाद आता है। विशेषज्ञान अर्थात् इन्द्रियज्ञान में आत्मा के आनन्द का स्वाद नहीं आता है; परन्तु आकुलता और दुख का स्वाद आता है। परद्रव्य का अवलम्बन लेकर जो ज्ञान होता है, वह विशेष ज्ञान है। भगवान की वाणी सुनकर जो ज्ञान हुआ वह इन्द्रियज्ञान है,विशेषज्ञान है; वह आत्मा का ज्ञान, अतीन्द्रियज्ञान, सामान्यज्ञान नहीं है। .. ज्ञानी को आत्मा का ज्ञान हुआ है, उस सामान्यज्ञान को ज्ञानी अपना ज्ञान जानता है और पर को जानता हुआ इन्द्रियज्ञान जो अनेकाकाररूप परसत्तावलम्बी ज्ञान होता है, उसको अपना ज्ञान मानता नहीं।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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