________________
142
मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्ज्ञान विशेष जानने की आकांक्षा से बस होओ! स्वरूप निश्चलता ही बनी रहे।
आहाहा ! देखो मुनि अपनी दशा की बात करते हैं कि केवली की तरह हम भी केवल शुद्धात्मा का अनुभव करने से श्रुतकेवली हैं। ___ जिसप्रकार अमृतकुण्ड को कोई सूर्य के प्रकाश से देखे और कोई उसी को दीपक के प्रकाश से देखे तो दृष्टिगोचर वस्तु में कोई अन्तर नहीं है; उसीप्रकार केवली तो केवलज्ञान-सूर्य से अमृतकुम्भ आत्मा को देखते हैं और श्रुतकेवली दीपक समान श्रुतज्ञान से अमृतकुम्भ आत्मा को देखते हैं।
यद्यपि सूर्य और दीपक के प्रकाश में अन्तर है; तथापि उनके द्वारा देखी गई वस्तु में कोई अन्तर नहीं है। ऐसा कहकर केवली के साथ श्रुतकेवली की समानता की है। (आत्मधर्म : जुलाई १९८०, पृष्ठ-२१)
१४. प्रश्न - सूक्ष्म उपयोग का अर्थ क्या है?
उत्तर-अन्दर आत्मा ध्रुववस्तु पड़ी है, उसको पकड़नेवाला उपयोग सूक्ष्म है। जो पुण्य-पाप के परिणामों में ही रुक जाये, वह उपयोग स्थूल है।
(आत्मधर्म : अप्रेल १९८१, पृष्ठ-२३) १५. प्रश्न - उपयोग सूक्ष्म कैसे हो?
उत्तर - अन्दर में आत्मवस्तु अचिंत्य सामर्थ्यवाली पड़ी है, उसकी रुचि करे तो उपयोग सूक्ष्म होकर अन्दर में झुकता है।
(आत्मधर्म : अप्रेल १९८१, पृष्ठ-२३) १६. प्रश्न-धारणा का विषय आत्मा है या नहीं?
उत्तर- बाहर के उघाड़ से होनेवाली धारणा का विषय आत्मा नहीं है; किन्तु सम्यक् -मतिज्ञान में आत्मा को जानकर जो धारणा हुई, उसका विषय आत्मा है; इस धारणा से ज्ञानी पुनः-पुनः आत्मा का स्मरण करता है।
(आत्मधर्म : नवम्बर १९७७, पृष्ठ-२४)