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________________ 134 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन उत्तर- उपयोग में उपयोग अर्थात् सम्यग्दर्शन की निर्विकल्प परिणति में उपयोग अर्थात् त्रैकालिक आत्मा आता है। __ आत्मा तो आत्मारूप-उदासीनरूप में विद्यमान है, निर्विकल्प होने पर शुद्धोपयोग में त्रैकालिक उपयोगस्वरूप आत्मा जाना जाता है। (आत्मधर्म : सितम्बर १९७६, पृष्ठ-२४) ६०. प्रश्न - विकल्पसहित निर्णय करना सामान्य श्रद्धा और निर्विकल्प अनुभव करना विशेष श्रद्धा - क्या यह ठीक है ? - उत्तर - नहीं, श्रद्धा में सामान्य-विशेष का भेद है ही नहीं। अखण्ड आत्मा की निर्विकल्प अनुभवसहित प्रतीति करना वही सम्यग्दर्शन है। इस सम्यग्दर्शन करनेवाले जीव को प्रथम आत्मा ज्ञानस्वरूप है - ऐसा विकल्पसहित निर्णय होता है,तत्पश्चात् जब निर्विकल्प अनुभव करता है, तब पहले के विकल्पसहित किये गये निर्णय को व्यवहार कहा जाता है। (आत्मधर्म : फरवरी १९७७, पृष्ठ-२७) ६१. प्रश्न-स्वानुभव करने के लिये छह मास तक अभ्यास करना बताया- वह अभ्यास क्या करना ? उत्तर - राग वह मैं नहीं, ज्ञायक वह मैं हूँ - इसप्रकार ज्ञायक की दृढ़ता जिसमें हो वैसा बारम्बार अभ्यास करना। (आत्मधर्म : फरवरी १९७७, पृष्ठ-२७) ६२. प्रश्न - आत्मा की रुचि हो और सम्यग्दर्शन न हो सके तो अग्रिम भव में होगा क्या? उत्तर-आत्मा की सच्ची रुचि हो उसे सम्यग्दर्शन होगा ही, अवश्य होगा। यथार्थ रुचि और लक्ष्य होने पर सम्यग्दर्शन न हो, यह तीन काल में नहीं हो सकता।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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