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________________ 135 श्रीकानजी स्वामी के उद्गार वीर्य में हीनता नहीं होनी चाहिये, वीर्य में उत्साह और निःशंकता होनी चाहिये। कार्य होगा ही - इसप्रकार हमारे निर्णय में आना चाहिये। . (आत्मपर्म : सितम्बर १९७९, पृष्ठ-२७) ६३. प्रश्न - धारणाज्ञान में यथार्थ जाने तो सम्यक्सन्मुखता कही जाय या नहीं ? उत्तर - धारणाज्ञान में दृढ़संस्कार अपूर्व रीति से संस्कार डालें, अर्थात् पहले कभी नहीं डाले हों - ऐसे अपूर्व रीति से संस्कार डाले जावें तो सम्यक्सन्मुखता कही जाये।(आत्मधर्म : अक्टूबर १९८०, पृष्ठ-२४) ६४. प्रश्न - अन्तर में उतरने के लिये रुचि की आवश्यकता है या कोई अन्य भूल है जिसके कारण अन्तर में नहीं उतर पाता है ? .. उत्तर - अन्तर में उतरने के लिये सच्ची रुचि की आवश्यकता है; किन्तु इस रुचि के सन्दर्भ में अन्य कोई क्या कह सकता है, स्वयं से ही निर्णय होना चाहिये। सच्ची रुचि हो तो आगे बढ़ता जाय और अपना कार्य कर ले। (आत्मधर्म : अप्रेल १९८१, पृष्ठ-२५) ६५. प्रश्न -क्या नव तत्त्व का विचार पाँच इन्द्रियों का विषय है? नवतत्त्व के विचारक को किसका अवलम्बन है? उत्तर - नव तत्त्व का विचार पाँच इन्द्रियों का विषय नहीं है, पाँच इन्द्रियों के अवलम्बन से नव तत्त्व का निर्णय नहीं होता अर्थात् नव तत्त्व का विचार करनेवाला जीव पंचेन्द्रिय के विषयों से तो हट गया है। . अभी मन का अवलम्बन है; परन्तु वह जीव मन के अवलम्बन में अटकना नहीं चाहता, वह तो मन का अवलम्बन भी छोड़कर अभेद आत्मा का अनुभव करना चाहता है। स्वलक्ष्य से राग का नकार और स्वभाव का आदर करनेवाला भाव निमित्त और राग की अपेक्षा से रहित भाव है, उसमें जो भेद के अवलम्बन की रुचि छोड़कर अभेद स्वभाव के अनुभव करने की रुचि
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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