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________________ मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन ३८. प्रश्न - शास्त्राभ्यास आदि करने पर भी उससे सम्यग्दर्शन नहीं होता तो सम्यग्दर्शन के लिए क्या करना ? 126 उत्तर - यथार्थ में तो एक आत्मा की ही रुचिपूर्वक सबसे पहिले आत्मा को जानना, वही सम्यग्दर्शन का उपाय है। - आत्मा का सत्य निर्णय करनेवाले को पहिले सात तत्त्वों का सविकल्प निर्णय होता है, शास्त्राभ्यास होता है, शास्त्राभ्यास ठीक है ऐसा भी विकल्प होता है, लेकिन उससे यथार्थ निर्णय नहीं होता। जहाँतक विकल्प सहित है, वहाँतक परसन्मुखता है, परसन्मुखता से सत्य निर्णय नहीं होता । स्वसन्मुख होते ही सत्य निर्विकल्प निर्णय होता है। सविकल्पता द्वारा निर्विकल्प होना कहा है तो भी सविकल्पता निर्विकल्प होने का सही कारण नहीं है। तब भी सविकल्पता पहिले होती है, इसीकारण सविकल्प द्वारा निर्विकल्प होना कहा जाता है। (आत्मधर्म : जुलाई १९७६, पृष्ठ-२० ) अशुभभाव के सद्भाव में आयुष्य ३९. प्रश्न – क्या सम्यग्दृष्टि को बंधती है ? उत्तर - सम्यग्दृष्टि को चौथे-पाँचवे गुणस्थान में व्यापार- विषयादि का अशुभराग भी होता है; तथापि सम्यग्दर्शन का ऐसा माहात्म्य है कि उसको अशुभभाव के समय आयुष्य नहीं बँधती, शुभभाव में ही बँधती है। सम्यग्दर्शन का ऐसा प्रभाव है कि उसके भव बढ़ते तो हैं ही नहीं; यदि भव होते भी हैं तो नीचा भव नहीं होता, स्वर्गादि का ऊँचा भव ही होता है। ( आत्मधर्म : नवम्बर १९७८, पृष्ठ- २६) G ४०. प्रश्न – जिसकै प्रताप से जन्म-मरण टले और मुक्ति प्राप्त हो ऐसा अपूर्व सम्यग्दर्शन पंचमकाल में शीघ्र हो सकता है क्या ? उत्तर - पंचमकाल में भी क्षणभर में सम्यग्दर्शन हो सकता है। पंचमकाल सम्यग्दर्शनादि प्राप्त करने के लिए प्रतिकूल नहीं है। सम्यग्दर्शन
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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