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________________ श्रीकानजी स्वामी के उद्गार 127 प्रगट करना तो वीरों का काम है, कायरों का नहीं। पंचमकाल में नहीं हो सकता, वर्तमान में नहीं हो सकता - ऐसा मानना कायरता है। बाद में करेंगे, कल करेंगे - इसप्रकार वायदा करनेवालों का यह काम नहीं है। आज ही करेंगे, अभी करेंगे - ऐसे वीरों का यह काम है। आत्मा आनंदस्वरूप है, उसके समक्ष देखनेवालों को पंचमकाल क्या करेगा? (आत्मधर्म : दिसम्बर १९७८, पृष्ठ-२६) ४१. प्रश्न-शुद्धात्मा की रुचिरूप सम्यग्दर्शन को निश्चयसम्यग्दर्शन कहा गया है। उस निश्चयसम्यग्दर्शन के सराग सम्यक्त्व और वीतराग सम्यक्त्व ऐसे दो भेद क्यों ? ___उत्तर-निश्चय सम्यग्दर्शन के साथ वर्तते हुये राग को बताने के लिए निश्चय सम्यक्त्व को सराग सम्यक्त्व कहा जाता है। वहाँ सम्यग्दर्शन तो निश्चय ही है, परन्तु साथ में प्रवर्तमान शुभराग का व्यवहार है; अतः उसका सम्बन्ध बताने के लिए सराग सम्यक्त्व कहने में आता है। गृहस्थाश्रम में स्थित तीर्थकर, भरत, सगर आदि चक्री तथा राम, पाण्डव आदि को सम्यग्दर्शन तो निश्चय था। तथापि उसके साथ वर्तते हुए शुभराग का सम्बन्ध बताने के लिए उन्हें सराग सम्यग्दृष्टि कहा जाता है। - यहाँ मूल प्रयोजन वीतरागता पर वजन देना है। इसलिए निश्चय सम्यक्त्व होने पर भी उसे सराग सम्यक्त्व कहा गया है और उसे वीतराग सम्यक्त्व का परम्परा साधक कहा है। - शुद्धात्मा की रुचिरूप निश्चय सम्यग्दर्शन में सराग और वीतराग के भेद नहीं हैं। है तो एक-सा सम्यग्दर्शन, किन्तु जहाँ स्थिरता की मुख्यता का कथन चलता हो, वहाँ सम्यक्त्व के साथ वर्तते हुए राग के सम्बन्ध को देखकर उसे सराग सम्यक्त्व कहा है और रागरहित संयमी के वीतराग सम्यक्त्व कहा है; क्योंकि जैसा वीतरागस्वभाव है, वैसा
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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