SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घृणा करेगा, या शरीर को पीडा देगा, न कि शरीर को गंदा समझेगा, या दुर्बल बनाएगा । वह शरीर को आत्मा की सेवा मे लगाने हेतु स्वस्थ सशक्त और सक्षम रखेगा और उसी निरोगी शरीर के माध्यम से शरीर मे विराजीत आत्मदेवता को जानने पहचानने और विकसित करनेपर अधिक ध्यान देगा और इसतरह से प्राप्त शारीरिक और आध्यात्मिक दोनो शक्तियाँ आत्मप्रगति के साथ साथ सामाजिक उल्थान के लिए भी उपयोग में लायेगा । बेटे इ. ड - कुटुंब - समतायोगी घर में पिता, माता, भाई, बहन, बहू, सभी स्वजनों के साथ अत्मवत् व्यवहार करेगा । यदि कभी अज्ञान मोह या लोभ के कारण कोई पारिवारिक झगडा खडा होने की संभावना हो तो वह समभावसे अपना कर्तव्य सोचेगा और शांति से उसमे हल निकालने की कोशिश करेगा। परिवार जन्य भेदों को लेकर वह संघर्ष, झगडा आसक्ति या व्देष नही करेगा क्योंकि वह समझता है कि, ये भेद शरीर को लेकर बने है। आत्मा को लेकर नही । इसका मतलब ये भी नही कि समतायोगी निश्चेष्ट मूक उदासीन या तटस्थ होकर चुपचाप बैठ जाएगा। वह अपनी मर्यादा मे जो भी अच्छी प्रवृत्तियाँ होंगी उन्हे अधिकाधिक अच्छी तरह करेगा । उपनी क्षमतानुसार निर्वाह का जो भी साधन उसने अपनाया होगा। चाहे वह कोई व्यापारी हो, इंजीनीयर, या डॉक्टर हो, नोकरी करनेवाला हो या कोई दर्जी, चमार हो वह अपने कार्यमे उत्तमोत्तम होने की कोशिश करेगा । वह अपना काम हमेशा समता मे रहकर ज्यादा से ज्यादा समाजोपयोगी करेगा फ- समाज हर एक समता योगी चाहेगा, प्रयत्न करेगा कि मेरे जैसे सभी समतायोगी बने। सब समतायोगी अपना अपना काम ईमानदारी से निभाकर समाज का भला चाहेंगे । सामाजिक भेदों से २७
SR No.007120
Book TitleSamayik Ek Adhyatmik Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Lunkad
PublisherKalpana Lunkad
Publication Year2001
Total Pages60
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy