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अ) मन- समता के कारण मन एक सखोल शांति का अनुभव सातत्य से करने लगता है। इसलिए तनाव (stress)कम होने लगता है। हमारी आत्मशक्ति बढने से कोई भी तनावपूर्ण स्थिति पैदा हो तो हम अपना संतुलन बिना खोए शांति,और धीरज के साथ उसका हल ढूँढकर उसका निवारण कर लेते हैं । सुख दुख दोनो मे हम स्थितप्रज्ञ होना सीख लेते हैं । साक्षीभाव के कारण हम काम, क्रोध, मद, मोह, मत्सर आदि विकारोंपर धीरे धीरे काबु पाना सीख लेते है। हर संकट का सामना हम आत्मशक्ति से करते है। और एक चिरस्थायी मानसिक शांती प्राप्त होने लगती है। ब- वचन - समता के कारण पैदा होनेवाले प्रेमभाव,मैत्रीभाव, करूणाभाव, माध्यस्थभाव आदि के कारण हमारे वचन,अपने आपही मृदु, प्रेमभरे , सौम्य , और शीतकारी बनने लगते है । . . क-काया मन और शरीर का गहरा संबंध है। मनशांति का असर हमे हमारे शरीरपर दिखाई देने लगता है । मनशांती से - शरीर की रोगप्रतिकार शक्ति बढ़ जाती है। जिससे छोटी मोटी बीमारियाँ आना कम हो जाता है। बहुत सारी बीमारीयाँ, जो मानसिक तनाव से पैदा होती है , जैसे हृदय विकार, ब्लडप्रेशर, पेप्टीक अल्सर , कुछ त्वचा विकार,अस्थमा, थॉयरॉइड,की बीमारियाँ इ. ये बीमारियाँ पहले से ही हो तो कम से कम दवाइयो मे नियंत्रण मे आ जाती है। और अगर ये बीमारियाँ न हो, तो भविष्य मे कभी निर्माण होने की संभावना कम हो जाती है। इसतरह समता से शरीर स्वास्थ का लाभ होता है।
दूसरी बात - समता योगी समझता है कि, "शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम् "शरीर माध्यम है इसलिए समतायोगी कभी शरीर की तरफ दुर्लक्ष नही करेगा ,न कि शरीर से
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