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________________ दिनोंके बाद सही मानोंमे जमती जाएगी। एक बार सामायिक परिपूर्णता से आने लगी, ध्यान ठीक से लगने लगा, मन को एकाग्र करने की कला आ गई, शरीर मे विचारण करते चेतना की प्रचिती आने लगी, कायोत्सर्ग और समता की अनुभूति ठीक से आने लगी, फिर धीरे ध धीरे रोजाना सामायिक का हर पहलू आपको कुछ ना कुछ नयी अनुभूति देता जाएगा। आपका आध्यात्मिक अनुभव बढता जाएगा | आपके जीवन मे एक धार्मिक क्रांति घटित होना शुरू हो जाएगी। आपका जीवन बदलने लगेगा । रोजाना आज्ञाचक्र पर मन को साक्षीभावसे एकाग्र करके कायोत्सर्ग भाव, समता भाव मन मे लाने से ये भाव चेतन मन से (from concious mind) अचेतन मन मे (to subconcious mind) गहराई से उतरते जाएंगे । और धीरे धीरे ये भावनाएँ आपके व्यक्तित्व का हिस्सा होने लग जाएगी । व्यक्तित्व का हिस्सा बनी समता का असर अपने मन, वचन काया, कुटूंब दैनंदिन व्यवहार इन सबमे दिखाई देना शुरूहोगा । इस धर्माचरण का प्रतिबिंब हमारे नित्यप्रति के व्यवहाराचरण मेउतरना शुरू होगा । संक्षेप मे शुध्द और सत्य व्यवहार का नाम ही तो धर्म है जब हम समझते है कि, व्यवहार अलग बात है, व्यवहाराचरण धर्माचरण से सर्वथा अलग है। यही सबसे बड़ी गलती है । फिर यह धर्माचरण केवल एक पाखंडी कर्मकांड बन कर रहता है । और सच्ची सामायिक यह गलती होने ही नही देती । वह तुम्हारा धर्माचरण व्यवहार उतार के ही रहेगी । यह सामायिक की बहुत बडी उपलब्धि है । तो आइए देखते है इस सामायिक का, इस समता का हमारे मन वचन काया, कुटूंब और समाज पर क्या असर होता है । २५
SR No.007120
Book TitleSamayik Ek Adhyatmik Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Lunkad
PublisherKalpana Lunkad
Publication Year2001
Total Pages60
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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