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________________ आगे बढनेकी कोशिश दिलोजानसे करता है। तो सच्चे सुगुरू को कौन सा शिष्य अधिक पसंद होगा? दूसरा ही । - जैसे दिन रात नारायण नारायण जाप करनेवाले नारद से दिनभर कष्ट करनेवाला किसान जो दिन मे एकही बार नारायण का नाम लेता है, वही भगवान को ज्यादा प्रिय है। वैसे ही साधना मे प्रार्थना या स्तुति से ध्यानमार्ग का ही महत्ता अधिक है। प्रश्न ४ - सामायिक ४८ मिनट की ही क्यों ? उत्तर - सूत्रकारोंने सामान्य आदमी की मानसिक शक्ति का जरूर अभ्यास किया है। उनका निरीक्षण है कि, मनुष्य का मन किसी एक विचार मे, एक संकल्प में, एक भाव मे, एक ध्यान में, एक मुहूर्त से ज्यादा देर नही रह सकता। एक मुहूर्त(४८ मि.) के बाद विचारोंमे परिवर्तन आ जाएगा। इसलिए उन्होंने कहा है, "अंतोमुहुर्त काल चित्तसेगग्गया हवई झाणं" (आवश्यक मलयगिरी ४/४३) इसलिए सामायिक का समय एक मुहूर्त याने ४८ मिनट कहा गया है | अडतालीस मिनटसे एक सेकंद भी कम हो तो उसे अन्तमुहूर्त कहते है। १०) सामायिक से लाभ सामायिक को शिक्षाव्रत कहा है। इसका मतलब है इसे अभ्यासपूर्वक सीखना होगा । एक ही बार सामायिक करनेसे कोइ उपलब्धि नही होगी। जैसे कोई भी विषय बार बार दोहराने से हमे उसपर मास्टरी हो जाती है। वैसे ही सामायिक नित्यनियम से करने से.धीरे धीरे कुछ ૨૪
SR No.007120
Book TitleSamayik Ek Adhyatmik Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Lunkad
PublisherKalpana Lunkad
Publication Year2001
Total Pages60
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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