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भावार्थ- हे श्रावक इस शरीर की कोइ हलचल न होने दे, कोइ जाप मत कर, कोइ विचार मत कर (अर्थात काया, वचन, और मन पूर्णत: स्थिर कर) जिससे आत्मा स्थिर होगा । अर्थात अपने स्वभाव मे रहेगा | इसतरह आत्मा आत्मामे ही स्थिर हो जाना सर्वश्रेष्ठ ध्यान है ।
यह हुआ कायोत्सर्ग ध्यान, धर्मध्यान बीच में एकाध बार आँख खोलकर समय का अंदाजा लो फिर लगे रहो ध्यान में । इस क्रिया को करीबन ३० मिनट दो । जैसे ही सामायिक का समय पूरा होने को आता है, फिर शरीर के प्रति सजग हो जाओ ।
११) फिर समाप्ति सूत्र कहो ( एयस्स नवमस्स) या समाप्ति सूत्र का सारभूत अर्थ निम्नलिखित हिंदी मे कहो
"आदेशवत् समभाव का पालन नही हुआ हो कभी
प्रभो, इस साधना के दोष निष्फळ हो सभी । " १२ ) फिर एक बार नवकार मंत्र कहिए और उठ जाइए ।
९) कुछ प्रश्न इस नये सामायिक के विधि के बारेमें प्रश्न १- ध्यान मे बैठने के बाद शुरूआत मे साँस की तरफ मन को एकाग्र करने से क्या लाभ ?
उत्तर- श्वास एक बहुत ही आसान सा, सहज आलंबन है । यह हमारे प्राणोंसे भी जुड़ा है, इसलिए मनपर काबू पाकर अंतर्मन मे प्रवेश करने का यह एक महत्वपूर्ण आलंबन है । शुरू मे मन एकाग्र करने के लिए इससे आसानी होती है। इसमे हम मनको स्वाभाविकता से आते जाते श्वास की तरफ देखने को कहते है ।
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