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________________ लाइएं" मै शरीर नही हूँ, मै आत्मा हूँ, मै चेतना हूँ। जो चेतना मुझमे है वैसी ही चेतना जगके सभी प्राणीमात्रोंमे है। चेतना के स्तर पर जगके सभीप्राणीमात्र एक समान है । चेतना के स्तर पर जगके सभी सजीव एक समान है | चेतना के स्तरपर मै और सभी जीव एक समान है। मैं शरीर नही हूँ। मै आत्मा हूँ। कर्मोकी निर्जरा करके, षडविकारोंकों दूर करके, राग द्वेष को जीतकर, यही आत्मा परमात्मा बनेगी । यही मेरा ध्येय है। मै शरीर नही हूँ मै आत्मा हूँ ।" ऐसा चिंतन करते हुए, धीरे धीरे अपने शरीर मे विचरण करते हुए चेतना के प्रवाह के बारे मे जागृत हो जाइए, हाथोंमें, उंगलियोंमे, पावोंमे पूरे शरीर मे जहाँ भी महसूस हो चेतना के प्रवाह को महसूस करते जाइए जैसे ही इस चेतना की अनुभूति होती है, तो महसूस कीजिए, सोचिए मैंयही चेतना हूँ। मैं शरीर नही हूँ । धीरे धीरे शरीर हलका होता जाएगा और चेतना के प्रवाह के प्रति आप अधिकाधिक सजग होते जाएंगें। तब भी सोचना यही चेतना मैं हूँ ऐसी चेतना जग के सभी प्राणियों मे है चेतना के स्तरपर हम सब समान है । धीरे धीरे शरीर हलेका लगते जाएगा, चेतना का प्रवाह बढता जाएगा, बाद मे ऐसा लगने लगता है कि, शरीर का कुछ हिस्सा लुप्त हो गया है, या पूरा शरीर लुप्त हो गया है । + इस अनुभूति का आनंद लेते हुए आप बैठे रहे स्थिर एकाग्र मौन । ऐसी अवस्था का वर्णन करते हुए सूत्रो मे कहा गया है, मा चिठठ्ह, मा जपह, मा चिन्तह किंवी जेण होई थिरो अप्पा अप्पामि रओ इणमेव परं हवे झाणं ॥ ૨૦ ( बृहद द्रव्य संग्रह - ५६)
SR No.007120
Book TitleSamayik Ek Adhyatmik Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Lunkad
PublisherKalpana Lunkad
Publication Year2001
Total Pages60
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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