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________________ हो तो किताब रखें अन्यथा किताबों की भी जरूरत नही । "सामायिक समभाव की अपेक्षा रखता है। वह मुखवस्त्रिका, पूँजनी, विशिष्ट आसन आदि की अपेक्षा नही रखता। ये सब चीजे. 'समभाव के अभ्यास के साधनमात्र है। यदि ये चीजे समभाव के अभ्यास मे हमे उपयोगी न हो सकी तो परिग्रह मात्र है, आडंबर मात्र है ” । ( सामायिक सूत्र - उपाध्याय अमरमुनि) ३) स्थान पौषधशाला, उपाश्रय, स्थानक, घर या कोई भी शांत, एकांत तथा सुरक्षित स्थान । आभूषण न पहने, वस्त्र सीधे सादे स्वच्छ और ढीले ४) वस्त्र हो। तंग या कसकर वस्त्र न पहने । दैनंदिन गृहस्थी के वस्त्र न हो तो और भी अच्छा । श्वेत वस्त्र हो तो और भी अच्छा । - - ५) आसन पूँजनी से या स्वच्छ धुले रूमाल से भूमि को हल्के से साफ करके एक पूट उनी या सूती आसन बिछाकर अगर मुखवस्त्रिका प्रयोग करना चाहते हो, उसे मुहँपर बांधे | उसके बाद अगर साधु साध्वी हो तो उन्हे वंदना कर सामायिक ग्रहण करने की आज्ञा ले । अगर साधु साध्वी न हो तो पूर्व, उत्तर या इशान्य दिशा की ओर मुँह करके किसी भी सुलभआरामदायी आसन में बैठ जाइए | अगर पद्मासन या सिध्दासन में बैठ सकते हो और भी अच्छा पर वह सुलभ (comfortable) होना चाहिए । नही तो हमेशा की तरह सुखासन में बैठ जाइए - इसे पर्यकासन भी कहते । अगर किसीको शारिरीक बिमारियों की वजह से बैठनेमें तकलिफ हो तो वे कुर्सीपर भी बैठ सकते हैं । फिर दोनो हाथ जोडकर नमस्कार की स्थिति मे बैठो। अं) रीढ की हडडी बिलकुल सीधी रहे । १७.
SR No.007120
Book TitleSamayik Ek Adhyatmik Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Lunkad
PublisherKalpana Lunkad
Publication Year2001
Total Pages60
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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