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सामायिक में कोई मार्गदर्शन नही है। ६) अज्ञान वशात हमने सामायिक को ठीक से समझा नही। उसकी आत्मा हमने खो दी है। और खाली ढाँचे को पकडकर चल रहे हैं। हम आपको प्रचलित सामायिक मे लगनेवाली त्रुटियाँ टालकर और उसके ढाँचे में ही उसकी आत्मा डालकर एक सम्यक सामायिक की विधि देना चाहते है। ... ७) कई संतो के साथ चर्चा में ऐसा विचार व्यक्त हुआ कि, सामान्य आदमी को एकदम से ध्यान मे बिठाना मुश्किल है। शुरूशुरू मे उसे जाप,धर्मकथा,धर्मचर्चा, अनापूर्वी,भक्तामर,या स्वाध्याय ही ठीक है। पर सब मानते है कि ये शुरुशुरू के आलंबन है , साधन है। जैसे बच्चे को शुरू शुरू मे उँगली पकडकर चलना पडता है , वैसे ये साधन है। लेकिन बाद मे यह ऊँगली छोडकर उसे खुद अपने पैरों पर चलना चाहिए। सब गलती यही होती है ,एक तो हमने उसे गलत उँगली पक्रडवा दी और अब है के वो जिंदगीभर उँगली पकडकर ही चल रहा है । आगे जाकर अपने बल पर कैसे चले इसका उसे कोई मार्गदर्शन नही। ..
. हम चाहते है कि,अनावश्यक आलंबनो का सहारा धर्मध्यान मे लेना ही गलत उँगली पकडवाना है। इस गलती के कारण असंख्य साधक जो आज इतनी श्रध्दा से सामायिक मे बैठते है,सालोसाल रोजाना सामायिक करते है। उनकी उर्जा साधना के सही मार्गपर नही जा रही । इसी कारण उनमे उतनी आध्यात्मिक प्रगति नही दिखाई पडती। इसके लिए गलत मार्गदर्शन ही कारणीभूत है। हम चाहते है कि, इस गलती को ठीक किया जाए , साधक को सही मार्गदर्शन मिले । उसके हाथमे सही उँगली दी जाए, जिससे बाद मे वह पूर्णतया खुद के पैरों पर बगैर सहारे ,खुद की साधना खुद करसके.
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