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करने से मूल पाटियाँ जो अर्धमागधी मे है, वैसी ही रहेगी और वे धर्म अभ्यासकों के लिए तथा मूनियों के लिए पर्याप्त रहेंगी। हमने यहाँ सामायिक का विधि देते हुए -पाटिओंका अर्थ तथा उद्देश ध्यान मे लेकर संक्षिप्त मे हिंदी मे पाटियाँ दी है। सही धर्मध्यान सिखाने के लिए यह एक नम्र प्रयास है। वैसे भी पाटियाँ कहना सही सामायिक नही है। पाटियाँ सामायिक के लिए क्षेत्रशुध्दी तथा भावशुद्धि का काम करती हैं। सामायिक तो "करेमी भंते" के पाठ कहने के बाद शुरू होती है। ... . . २) अबजब सामायिक शुरू होती है तो सामायिक के अंदर -४८ मिनट के लिए स्वाध्याय , धर्मचर्चा, धर्मकथा सुनना,जाप, अनापूर्वी , भक्तामर स्तोत्र या ध्यान करने को कहा है। इसमें कोई भी कृति सामायिक मे करने से समताभाव सामायिक मे कैसे प्राप्त हो सकता है, इसके बारे मे प्रचलित सामायिक मे कोइ मार्गदर्शन नहीं है। ३) कायोत्सर्ग जो सामायिक की सही आत्मा है , उसे कोइ ठीक से नही समझता । एक तो कायोत्सर्ग सामायिक लेने के पहले- या सामायिक पारने के समय किया जाता है। उसे सामायिक मे स्थान नही। दूसरा- इतने महत्व की विधि लेकिन उसके लिए समय बहुत ही कम दिया जाता है। तीसरी बात - काउसव्ग मे ध्यानवस्था मे बैठकर इच्छाकारेणं या लोगस्स का पाठ बोलते है । इच्छाकारेणं इर्यापथिकी का पाठ है और लोगस्स चौबीस तीर्थंकरोकी स्तुति है, इनके कहनेसे कायोत्सर्ग याने के शरीर को आत्मा से अलग करना कैसे साध्य होगा?कायोत्सर्ग की इस प्रचलित विधि के बारे मे उपाध्याय अमरमुनिजी म.सा.ने अपना सामायिक सूत्र इस किताब में भी अपनी अस्वस्थता प्रकट की है।
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