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XI
१५. ७०० शिष्यो साथे अनशन स्वीकारीने अम्बड ब्रह्मलोकमां देव थाय छे. त्यांथी ते सद्गतिओमां जइ आ ज
भरतक्षेत्रमा आवती चोवीशीमां देवोपशम नामे बावीसमा तीर्थंकर थशे. बीजा पण अम्बड नामे भगवान् महावीरना एक श्रावक छे जे अहींथी कालधर्म पामी सहस्त्रारमा उत्पन्न थया छे. त्यांथी महाविदेहमां दृढप्रतिज्ञ नामे जन्म लई मोक्षे जशे. (पृ. २५२) [श्रीस्थानाङ्गसूत्रनी वृत्तिमां, (भगवान महावीर द्वारा कहेवायेलो) विद्याधर अम्बड परिव्राजक-श्रावक सुलसाने कुशल वार्ता पूछवा जाय छे, अने ए ज कालान्तरे २२मा तीर्थंकर थशे, एम कर्दा छे. साथे ज नोंध्युं छे के, औपपातिकसूत्रमा वर्णवायेल, ७०० शिष्योना गुरु अम्बड परिव्राजक, महाविदेहमां जन्म लई मोक्षे जशे. (अर्थात् ते तीर्थंकर नहीं थाय.) अहीं तत्त्व शुं छे ते विचारवा योग्य छे, कारण के परिव्राजक शब्द बन्ने अम्बड
श्रावको माटे वपरायो छे.] १६. पोताना निर्वाण समयने जाणी भगवान महावीर, गौतमस्वामीने देवशर्माना प्रतिबोध माटे मोकले छे अने
त्यांथी चम्पा नगरीमां सुभद्रा श्राविकाने कुशल वार्ता पूछवा मोकले छे त्यारे सुभद्रा तेमने भगवानना निर्वाणना
समाचार कहे छे. (पृ. २६२) १७. भस्मकग्रहना कुप्रभाव विशे वात करतां भगवान महावीर इन्द्रने कहे छे के मालव देशमा विक्रमराजा
पोताना नामे संवत्सर प्रवर्तावशे अने, ते पछी शक राजा पोतानो संवत्सर प्रवर्तावशे. (पृ. २५७-२५८) १८. भद्रबाहुस्वामी-कथान्तर्गत अमरगुरु-सरस्वतीनी कथा, त्रिविक्रम-ब्रह्मवर्ग-आखण्डलकथा तथा वीरशुभाकथा
अपूर्व छे. (पृ. २७९-२९०) १९. दशार्णभद्रराजा साथे सुद्धड नामक ब्राह्मण पण दीक्षा ले छे, ते सुद्धड ब्राह्मणनी कथा अपूर्व छे. (पृ. ३०४
३०५) २०. भवविरहसूरि कथामां, १. हरिभद्र ब्राह्मणने यज्ञ-पशुहिंसामा श्रद्धा नथी, ते "जेनुं वचन समझी नहीं शकुं
तेनो शिष्य थईश" एवी प्रतिज्ञा ले छे; २. गुरु भगवन्तने धर्मफल पूछतां तेओ-सस्पृहने सुरादिसुखप्राप्ति, निःस्पृहने भवविरह-प्राप्ति-एम कहे छे त्यारे, "मने भवविरह ज प्रिय छे" एवं हरिभद्र कहे छे; ३. हरिभद्रसूरिनो पितराई लल्लिग दीक्षा लेवा इच्छे त्यारे आचार्य तेने रोकी धनप्राप्ति माटे ज्योतिषशास्त्र अनुसार उपाय बतावे छे: ४. शिष्यो जिनभद्र-वीरभद्रना बौद्धविहारमां थएल अवसानथी पीडित आचार्य अनशन स्वीकारवा तैयार थाय छे, परन्तु, बोध थतां, "ग्रन्थोने ज शिष्यसन्तति मानीश" एवं विचारी ग्रन्थो रचे छे; ५. लल्लिग श्रावक उपाश्रयमां तेजस्वी रत्न मूके छे तेथी रात्रे पण ग्रन्थरचना थाय; ६. वासुकि श्रावकद्वारा वग्गकेवलियसूत्रनी पोथी प्राप्त थाय छे तथा आचार्य तेना पर वृत्ति लखे छे; ७. तेमना कालधर्म बाद, अन्तिम संस्कार समये देवो दुन्दुभि वगाडतां तेमना देहनी पूजा करवा आवे छे अने "तेओ सौधर्म देवलोकमां लीलक नामक विमानमां पांच पल्योपमना आयुष्यवाळा देव थया छे" - तेवू जणावे छे. (पृ. ३४१-३४३) [आवं चरित्र क्यांय जोवा मळ्युं नथी तेथी तेमां घणा पाठो त्रुटित होवा छतां पूरी शकाया नथी.]
आ बधां स्थानो अपूर्व/अल्पज्ञात छे. तेना सन्दर्भो प्रायः कोई प्राचीन ग्रन्थोमां जणाया नथी, तेमज पश्चात्कालीन ग्रन्थोमां पण जणाया नथी. मनोगतं किञ्चित्
वि.सं. २०६८मां भावनगरना चातुर्मासमां कहावलीना प्रथम खण्डनो प्रथम परिच्छेद प्रकाशित थयो हतो. ते पछी द्वितीय परिच्छेदनी सम्पूर्ण प्रतिलिपि करी, तेनी अत्यधिक अशुद्धिओ यथाशक्य टाळी, तेना मूलस्थानो तथा