________________
X
ARRRRRRRRRRRamanan
ग्रन्थनी विशेषता
आ ग्रन्थमा केटलीक कथाओ तथा कथागत केटलांक स्थानो एवां छे जे प्रचलित/प्राप्त ग्रन्थोमा प्रायः जोवा मळतां नथी. ते स्थानोनो निर्देश अहीं को छ : १. नग्गई प्रत्येकबुद्धकथान्तर्गत गन्धर्वनागदत्तनो पूर्वभव. (पृ. ८०) २. श्रेणिकपुत्र नन्दिषेण दीक्षाग्रहण बाद एकाकी विहारप्रतिमा करवा हिमालय पर्वत पासे गंगा नदीना किनारे
काउस्सग्ग-आतापना करे छे अने त्यां कोई आगन्तुक आवे तेनी पासे भक्त-पानादि ग्रहण करे छे. समीपमां वप्पिण नामक नगरमां त्रिलोकसुन्दरी नामे गणिका, पुत्री गुणसुन्दरीना विवाहनिमित्ते दान लेवा माटे,
नन्दिषेणने विनन्ति करे छे ते प्रसंग. (पृ. १३७) ३. सीह हालिक कथान्तर्गत लग-सग नामक वणिक् पुत्रोनी कथा तथा सुस्थितसूरिकृत त्रण शिष्योनी परीक्षानी
वात. (पृ. १५४-१५५) ४. भगवान महावीरस्वामी श्रेणिकराजाने नरकगतिना रोध माटे जे कारणो कहे छे तेमां अहीं बे कारणो वधारे आप्यां
छे – १. नरजाति-महामांसनो त्याग, २. बोर-फल खावानो त्याग. (पृ. १७५) ५. प्रचलित रौहिणेय चोरनी कथाना स्थाने अहीं रुप्पखुरय-लोहखुरय नामक पिता-पुत्र चोरोनी कथा छे. तेमां
लोहखुरय ते ज रौहिणेय छे. परन्तु तेना पिता रुप्पखुरयने सूळीए चढावती वखते अरहदास श्रेष्ठी द्वारा भक्त पच्चक्खाण तथा नमस्कार दान द्वारा ते चोरनी देवगति, चोरदेव द्वारा श्रेष्ठी, राजा तथा पुत्र-चोरने त्रण-त्रण
रत्न अपावा वगेरे कथाखण्ड. (पृ. १९०) ६. नमुक्कारफलकथान्तर्गत आठ कथाओ. (पृ. १८९-२००) ७. लोहखुरय चोर वरसादथी बचवा जिनभवनना द्वारमा ऊभो रहे छे अने तत्र स्थित आ. धर्मघोषसूरिनी देशनामां
देवोनां लक्षणनी गाथा सांभळे छे. ते गाथा याद राखी अभयकुमारना प्रपंचमांथी बची जाय छे अने आचार्य
पासे श्रावकनां व्रतो ग्रहण करे छे. (पृ. १९९-२००) अहीं भगवान महावीरनी के तेमनी वाणीनी वात नथी. ८. उज्जयिनीमां जीवितस्वामीनी प्रतिमा लई गया बाद प्रद्योतराजा द्वारा स्थापित चैत्यमां तेनी स्थापना तथा
लोकमां तेनी देवनिर्मितआयतन तरीके प्रसिद्धि. (पृ. २०४) ९. प्रभावतीना जीव देवे उदायन राजानी सेनानी तृषा छिपाववा माटे करेल त्रण पुष्करो, अने तेनाथी पुष्करतीर्थनी
स्थापना. (२०५) १०. वीतभयना उदायनराजाने तेमनी राणी प्रियङ्गमञ्जरी द्वारा विष आपी करायेलो मारवानो प्रयास. (पृ. २०७) ११. कोणिक-चेडाराजाना युद्धमा सोहिय नामक योद्धानो प्रसङ्ग. (पृ. २१०) १२. पोतनपुर नगरनुं बीजुं नाम पृष्ठचम्पा छे. तेना राजा साल अने युवराज महासाल प्रसन्नचन्द्र राजाना पुत्रो छे.
(पृ. २४०) १३. गौतमस्वामी अष्टापद पर्वत पर जङ्घाचारणलब्धिथी करोळियाना तन्तुनी सहायथी चड्या छे. (पृ. २४१) १४. ७०० शिष्योना गुरु, अम्बड परिव्राजक उत्सर्ग-रुचिवाळो, सर्वविरतिचारित्रना अतिचारोनो भीरु अने लोकापवादथी
भयभीत होवाथी परिव्राजकपणुं छोडी दीक्षा नथी लेतो, पण श्रावकनां व्रतो ग्रहण करे छे. तेने निरन्तर छ? तप करवाथी अवधिज्ञान तथा वैक्रियादिलब्धिओ उत्पन्न थयां छे. राजगृह जतां तेने, भगवान महावीर, सुलसानी कुशलवार्ता पूछवानु कहे छे. (पृ. २५१)