________________
प्राकृतव्याकरणस्य मूलसूत्राणि
इ-जे-रा: पादपूरणे ॥ २२२१७ ॥ प्यादयः ॥ २।२१८ ॥
तृतियः पादः वीप्स्यात् स्यादेर्वीप्स्ये स्वरे मो वा ॥ ३१ ॥ अत: से?ः ॥ ३२ ॥ वैतत्तदः ॥ ३३ ॥ जस्-शसोर्लुक् ॥ ३।४ ॥ अमोऽस्य ॥ ३५ ॥ टा-आमोर्णः ॥ ३।६ ॥ भिसो हि-हिँ-हिं ॥ ३७ ॥ ङसेस्तो-दो-दु-हि-हिन्तो-लुकः ॥ ३८ ॥ भ्यसस्त्तो-दो-दु-हि-हिन्तो-सुन्तो ॥ ३९ ॥ ङसः स्सः ॥ ३।१० ॥ डे-म्मि डे ॥ ३॥११॥ जस्-शस्-ङसि-तो-दो-द्वामि दीर्घः ॥ ३।१२ ॥ भ्यसि वा ॥ ३॥१३ ॥ टाण-शस्येत् ॥ ३१४ ॥ भिस्-भ्यस्-सुपि ॥ ३॥१५ ॥ इदुतो दीर्घः ॥ ३।१६ ॥ चतुरो वा ॥ ३१७ ॥ लुप्ते शसि ॥ ३॥१८॥ अक्लीबे सौ ॥ ३॥१९ ॥ पुंसि जसो डउ-डओ वा ॥ ३।२० ॥ वोतो डवो ॥ ३।२१ ॥ जस्-शसोर्णो वा ॥ ३।२२ ॥ ङसि-ङसोः पुं-क्लीबे वा ॥ ३।२३ ॥ टो णा ॥ ३॥२४ ॥ क्लीबे स्वरान्म सेः ॥ ३।२५ ॥ जस्-शस इ-इं-णयः सप्राग्दीर्घाः ॥ ३।२६ ॥ स्त्रियामुदोतौ वा ॥ ३।२७ ॥ ईत: सेश्चा वा ॥ ३।२८ ॥ टा-ङस्-डे रदादिदेवा तु ङसेः ॥ ३।२९ ॥ नात आत् ॥ ३॥३०॥ प्रत्यये ङीर्नवा ॥ ३।३१ ॥ अजातेः पुंसः ।। ३।३२ ॥
किं-यत्तदोस्यमामि ॥ ३॥३३ ॥ छाया-हरिद्रयोः ॥ ३॥३४ ॥ स्वस्रादेर्डा ॥ ३३५ ॥ हुस्वोऽमि ॥ ३३६ ॥ नाऽऽमन्त्र्यात्सौ मः ॥ ३३७ ॥ डो दी? वा ॥ ३३८ ॥ ऋतोऽद्वा ॥ ३॥३९ ॥ नाम्न्यरं वा ॥ ३४० ॥ वाऽऽप ए ॥ ३४१ ॥ ईदूतो हुस्वः ॥ ३४२ ॥ क्विपः ॥ ३।४३ ॥ ऋतामुदस्यमौसु वा ॥ ३।४४ ॥ आरः स्यादौ ॥ ३।४५ ॥ आ अरा मातुः ।। ३।४६ ॥ नाम्न्यरः ॥ ३।४७ ॥
आ सौ नवा ॥ ३।४८ ॥ राज्ञः ॥ ३।४९ ॥ जस्-शस्-ङसि-ङसां णो || ३५० ॥ टो णा ॥ ३५१ ॥ इर्जस्य णो-णा-ङौ ॥ ३५२ ॥ इणममामा ।। ३५३ ॥ ईद्भिस्भ्यसाम्सुपि ॥ ३५४ ॥ आजस्य टा-ङसि-ङस्सु सणाणोष्वण् ॥ ५५ ॥ पुंस्यन आणो राजवच्च ॥ ३।५६ ॥ आत्मनष्टो णिआ-णइआ ॥ ३॥५७ ॥ अतः सर्वादेर्डेजसः ॥ ३५८ ॥ डे: स्सि-म्मि-त्थाः ॥ ३।५९ ॥ नवाऽनिदमेतदो हिं ॥ ३६० ॥ आमो डेसि ॥ ३६१ ॥ किं-तद्भ्यां डासः ॥ ३६२ ॥ कि-यत्तद्भ्यो ङसः ॥ ३६३ ॥ ईद्भ्यः स्सा-से || ३६४ ॥ डे डहि-डाला-इआ काले ॥ ३६५ ॥ ङसेना ॥ ३६६ ॥ तदो डोः ।। ३।६७ ॥ किमो डिणो-डीसौ ॥ ३।६८ ॥