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प्राकृतव्याकरणस्य मूलसूत्राणि
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स्वपावुच्च ॥ १।६४ ॥ नात्पुनर्यादाइर्वा ॥ १६५ ॥ वाऽलाब्वरण्ये लुक् ॥ १।६६ ॥ वाऽव्ययोत्खातादावदातः ॥ १।६७ ।। घवृद्धेर्वा ॥ १।६८ ॥ महाराष्ट्र ॥ श६९ ॥ मांसादिष्वनुस्वारे ॥ १७० ॥ श्यामाके मः ॥ १७१ ॥ इ: सदाऽऽदौ वा ॥ १७२ ॥ आचार्ये चोऽच्च ॥ १७३ ।। ई: स्त्यान-खल्वाटे ॥ १।७४ ॥ उ: सास्ना-स्तावके ॥ ११७५ ॥ ऊद्वाऽऽसारे ॥ ११७६ ॥ आर्यायां यः श्वश्र्वाम् ॥ १।७७ ॥ एद् ग्राह्ये ॥ ११७८ ॥ द्वारे वा ॥ ११७९ ॥ पारापते रो वा ॥ १।८० ॥ मात्रटि वा ॥ १२८१ ॥ उदोद्वाऽऽर्दै ॥ १२८२ ॥
ओदाल्यां पङ्क्तौ ॥ १८३ ॥ हुस्वः संयोगे ॥ ११८४ ॥ इत एद्वा ॥ ११८५ ॥ किंशुके वा ॥ १।८६ ॥ मिरायाम् ॥ ११८७ ।। पथि-पृथिवी-प्रतिश्रुन्मूषिक-हरिद्रा-बिभीतकेष्वत् ॥१।८८ ॥ शिथिलेङ्गदे वा ॥ ११८९ ॥ तित्तिरौ रः ॥ १।९० ॥ इतौ तो वाक्याऽऽदौ ॥ १।९१ ॥ ईर्जिह्वा-सिंह-त्रिंशद्विशतौ त्या ॥ १।९२ ॥ लुकि निरः ॥ १।९३ ॥ द्विन्योरुत् ॥ ११९४ ॥ प्रवासीक्षौ ॥ ११९५ ॥ युधिष्ठिरे वा ॥ १।९६ ॥ ओच्च द्विधाकृगः ॥ ११९७ ॥ वा निझरे ना ॥ १।९८ ॥ हरीतक्यामीतोऽत् ॥ ११९९ ॥
आत्कश्मीरे ॥ १।१०० ॥ पानीयाऽऽदिष्वित् ॥ १।१०१॥ उज्जीर्णे ॥ १।१०२ ॥ ऊ-न-विहीने वा ॥ १।१०३ ।। तीर्थे हे ॥ १।१०४ ॥ एत्पीयूषा-ऽऽपीड-बिभीतक-कीदृशेदृशे ॥ १।१०५ ॥ नीड-पीठे वा ॥ १।१०६ ॥ उतो मुकुलाऽऽदिष्वत् ॥ १।१०७ ।। वोपरौ ॥ १।१०८ ॥ गुरौ के वा ॥ १।१०९ ॥ इधुंकुटौ ॥ १।११० ॥ पुरुष रोः ॥ १२१११ ॥ ईः क्षुते ॥ १।११२ ॥ ऊत्सुभग-मुसले वा ॥ १।११३ ॥ अनुत्साहोच्छन्ने त्स-च्छे ॥ १।११४ ॥ लुकि दुरो वा ॥ १।११५ ॥ ओत्संयोगे ॥ १।११६ ॥ कुतूहले वा हस्वश्च ॥ १।११७ ।। अदूतः सूक्ष्मे वा ॥ १२११८ ॥ दुकूले वा लश्च द्विः ॥ १२११९ ॥ ईर्वोव्यूढे ॥ १।१२० ॥ उधूं-हनूमत्कण्डूय-वातूले ॥ १।१२१ ॥ मधूके वा ॥ १।१२२ ॥ इदेतौ नूपुरे वा ॥ १।१२३ ॥
ओत्कूष्माण्डी-तूणीर-कूर्पर-स्थूल-ताम्बूल-गुडूची-मूल्ये ।। १२१२४ ॥ स्थूणा-तूणे वा ॥ १।१२५ ॥ ऋतोऽत् ॥ १।१२६ ॥ आत्कृशा-मृदुक-मृदुत्वे वा ॥ १।१२७ ॥ इत्कृपाऽऽदौ ॥ १।१२८ ॥ पृष्ठे वाऽनुत्तरपदे ॥ १।१२९ ॥ मसृण-मृगाङ्क-मृत्यु-शृङ्ग-धृष्टे वा ॥ १।१३० ॥ उदृत्वादौ ॥ १।१३१ ॥ निवृत्त-वृन्दारके वा ॥ १।१३२ ।। वृषभे वा वा ॥ १।१३३ ॥ गौणाऽन्त्यस्य ॥ ११३४ ॥