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प्राकृतव्याकरणस्य मूलसूत्राणि
परिशिष्ट - २ ।। प्राकृतव्याकरणस्य मूलसूत्राणि ।।
।। प्रथमः पादः ।। अथ प्राकृतम् ॥ ११ ॥ बहुलम् ॥ २ ॥ आर्षम् ॥ १३ ॥ दीर्घ-हुस्वौ मिथो वृत्तौ ॥ १४ ॥ पदयोः सन्धिर्वा ॥ १५ ॥ न युवर्णस्याऽस्वे ॥ १६ ॥ एदोतोः स्वरे ॥ १७ ॥ स्वरस्योवृत्ते ॥ १८ ॥ त्यादेः ॥ १९ ॥ लुक् ॥ १।१० ॥ अन्त्यव्यञ्जनस्य ।। २११ ॥ न श्रदुदोः ॥ १।१२ ॥ निर्दुरोर्वा ॥ १।१३ ॥ स्वरेऽन्तरश्च ॥ १।१४ ॥ स्त्रियामादविद्युतः ॥ १।१५ ॥ रो रा ॥ १।१६ ॥ क्षुधो हा ॥ १।१७ ॥ शरदादेरत् ॥ १।१८ ॥ दिक् - प्रावृषोः सः ॥ १।१९ ॥ आयुरप्सरसोर्वा ॥ १।२० ॥ ककुभो हः ॥ १।२१ ॥ धनुषो वा ॥ १।२२ ॥ मोऽनुस्वारः ॥ १।२३ ॥ वा स्वरे मश्च ॥ १।२४ ॥ ङ-ब-ण-नो व्यञ्जने ॥ १।२५ ॥ वक्रादावन्तः ॥ २२६ ॥ क्त्वा-स्यादेर्ण-स्वोर्वा ॥ १२७ ॥ विंशत्यादेर्लुक् ।। १।२८ ॥ मांसाऽऽदेर्वा ॥ १।२९ ॥ वर्गेऽन्त्यो वा ॥ १।३० ॥ प्रावृट-शरत्तरणयः पुंसि ॥ ॥३१ ।।
स्नमदाम-शिरो-नभः ॥ १।३२ ॥ वाऽक्ष्यर्थ-वचनाद्याः ॥ १।३३ ॥ गुणाद्याः क्लीबे वा ॥ १।३४ ॥ वेमाञ्जल्याद्याः स्त्रियाम् ॥ १।३५ ॥ बाहोरात् ॥ १।३६ ॥ अतो डो विसर्गस्य ॥ १।३७ ।। निष्प्रती ओत्परी माल्य-स्थोर्वा ॥ ११३८ ।। आदेः ॥ १।३९ ॥ त्यदाद्यव्ययात् तस्वरस्य लुक् ॥ १।४० ॥ पदादपेर्वा ॥ १४१ ॥ इतेः स्वरात् तश्च द्विः ॥ १।४२ ॥ लुप्तय-र-व-श-ष-सां श-ष-सां दीर्घः ॥ १।४३ ॥ अतः समृद्ध्यादौ वा ॥ १।४४ ॥ दक्षिणे हे ॥ १।४५ ॥ इः स्वप्नादौ ॥ १।४६ ॥ पक्वा-ऽङ्गार-ललाटे वा ॥ १।४७ ।। मध्यम-कतमे द्वितीयस्य ॥ १।४८ ॥ सप्तपणे वा ॥ ११४९ ॥ मयट्यइर्वा ॥ १।५० ॥ ईहरे वा ॥ १।५१ ॥ ध्वनि-विष्वचोरुः ॥ ११५२ ॥ वन्द्र-खण्डिते णा वा ॥ १।५३।। गवये वः ॥ १५४ ॥ प्रथमे प-थोर्वा ॥ ११५५ ॥ ज्ञो णत्वेऽभिज्ञाऽऽदौ ॥ १।५६ ।। एच्छय्यादौ ॥ १।५७ ॥ वल्ल्युत्कर-पर्यन्ता-ऽऽश्चर्ये वा ॥ १।५८ ॥ ब्रह्मचर्ये चः ॥ १।५९ ॥ तोऽन्तरि ॥ ११६० ॥
ओत् पद्मे ॥ १।६१ ॥ नमस्कार-परस्परे द्वितीयस्य ॥ ११६२ ।। वाऽपौ ॥ १।६३ ॥