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मातुरिद्वा ॥ १११३५ ।। उदूदोष | १|१३६ ॥
इदुतौ वृष्ट-वृष्टि - पृथक् - मृदङ्ग नके ॥ १।१३७ ॥
वा बृहस्पती | १|१३८ ॥
इदेदोद् वृन्ते ॥ १।१३९ ॥
रिः केवलस्य ॥ १११४० ॥ ऋणवृषभर्वृषौ वा ॥ १०१४१ ॥ दृश: क्विप्टक्सका ।। १११४२ ।। आदृते ढिः || १।१४३ ॥
अरि ॥ १।१४४ ।।
लृत इलि: क्लृप्त- क्लृन्ने ॥ १।१४५ ॥
एत इद्वा वेदना चपेटा देवर-केसरे । १११४६ ॥
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ऊः स्तेने वा ॥ १।१४७ ॥
ऐत एत् ॥ १।१४८ ॥
इत् सैन्धव-शनैश्चरे ॥ १११४९ ॥
सैन्ये वा ॥ ११५० ॥
अइदैत्यादौ च ॥ ११५१ ।। वैरादौ वा ॥ १।१५२ ॥ एच्च दैवे | १|१५३ ॥
उच्चैनीचैस्यअः ॥ १।१५४ ।।
ईद्धैर्ये ॥ ११५५ ॥ ओतोऽद्वाऽन्योन्य प्रकोष्ठ ऽऽतोद्य शिरोवेदना-मनोहर
सरोरुहे तोश्च वः ॥ १|१५६॥ ऊत् सोच्छ्वासे ॥ १।१५७ ॥
गव्यउ-आअः ॥ १।१५८ ॥ औत ओत् ॥ ११५९ ।। उत् सौन्दर्यादौ ॥ १।१६० ॥ कौक्षेयके वा ॥ १।१६१ ॥ अउः पौरादौ च ॥ १।१६२ ॥ आच्च गौरवे ॥ १।१६३ ॥
नाव्यावः ॥ १।१६४ ॥
एत् त्रयोदशादौ स्वरस्य सस्वरव्यञ्जनेन ।। १११६५ ॥
स्थविर - विचकिला यस्कारे ॥ १।१६६ ॥
वा कदले ॥ १।१६७ ॥
वेतः कर्णिकारे ॥ १११६८ ॥
अयौ वैत् ॥ १३१६९ ॥
ओत् पूतर-बदर-नवमालिका- नवफलिका- पूगफले
॥ १।१७० ॥
अवापोते ॥ १।१७२ ॥
ऊच्चो | ११७३ ॥
उमो निषण्णे || १।१७४ ॥
प्राकृतव्याकरणस्य मूलसूत्राणि
प्रावरणे अङ् ग्वाऊ ॥ १।१७५ ॥ स्वरादसंयुक्तस्याऽनादेः ॥ ११७६ ॥ क-ग-च-ज-त-द-प-य-वां प्रायो लुक् ॥ ११७७ ॥ यमुना चामुण्डा कामुकाऽतिमुक्तके मोऽनुनासिकक्ष
॥ १।१७८ ॥
नाऽवर्णात् पः ॥ अवर्णो यश्रुतिः ॥
१।१७९ ॥ १११८० ॥
कुब्न कर्पर कौले का खोऽपुष्पे । १।१८१ ॥ मरकत मदकले गः कन्दुके त्वादेः ॥ १११८२ ॥
किराते चः ॥ १।१८३ ॥
शीकरे म हौ वा ॥ १।१८४ ॥
चन्द्रिकायां मः ॥ १११८५ ।।
निकष- स्फटिक चिकुरे हः ।। १२११८६ | ख-घ-थ-ध-भां हः ॥ १।१८७ ॥
पृथकि धो वा ॥ १।१८८ ॥ शृङ्खले खः कः ॥ १।१८९ ॥ पुत्रागभागिन्योगों मः ॥ ११९० ॥ छागे लः ॥ १।१९१ ॥
ऊत्वे दुर्भग- सुभगे वः ॥ १।१९२ ॥ खचित-पिशाचयोवः सौ वा ॥ १।१९३ ॥
जटिले जो झो वा ॥ १।१९४ ॥
टोडः ॥ ११९५ ॥
सटा - शकट-कैटभे ढः ॥ १।१९६ ॥
स्फटिके लः ॥ १।१९७ ॥ चपेटा पाटो वा ॥ १।१९८ ॥
ठो ढः ॥ ११९९ ॥
अोठे ॥ १।२०० ॥
पिठरे हो वा, रश्च डः ॥ १।२०१ ॥
डो लः ॥ १।२०२ ॥
वेणौ णो वा ॥ १।२०३ ॥
तुच्छे तश्च - छौ वा ॥ १।२०४ ॥