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________________ 564 Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics 96) ......Hetuh...... (p. 136,v. 424) संजीवणोसहि पिव सुअस्स रक्खइ अणण्ण-वावारा। सासू णवन्भ-दसण-कंठागअ-जीविअं सुण्हं ॥ (सञ्जीवनौषधिमिव सुतस्य रक्षत्यनन्यव्यापारा । श्वश्रूनवाभ्रदर्शन-कण्ठागत-जीवितां स्नुषाम् ॥) -GS IV. 36 Bhuvanapala reads nosaham' (Sk: 'nausadham'.) 97) ..... Hetuh...... (p. 137, v. 428) हरिहिइ पिअस्स णव-चूअ-पल्लवो पढम-मंजरि-सणाहो। मा रुवसु पुत्ति पत्थाण-कलस-मुह-संठिओ गमणं ॥ (हरिष्यति प्रियस्य नवचूत-पल्लवः प्रथम-मञ्जरी-सनाथः । मा रोदीः पुत्रि प्रस्थान-कलश-मुख-संस्थितो गमनम् ॥) -GS II. 43 98) ...... Apattih (p. 138, v. 430) मा होहि तरुणि दइए चिरेण आओ ति माणमंथरिआ। अण्णह सो विरहग्गिम्मि गओ वि तहा गओ चेव ॥ (मा भव तरुणि दयिते चिरेणागत इति मान-मन्थरिता। अन्यथा स विरहाग्नौ गतोऽपि तथा गत एव ॥) 99) ......Arthapattih...... (p. 140, v. 433) संणिहिअ-भुजंगाओ वि चंदण-लइआओं जो थरथरेइ। . कह सो विओइणीणं कुणइ ण मलयाणिलो कंपं ॥ (संनिहितभुजङगा अपि चन्दन-लतिका यः कम्पयति । कथं स वियोगिनीनां करोति न मलयानिलः कम्पम् ॥) 100) ......Arthapattih...... (p. 140, v. 435) दक्खिण्णेण वि एंतो सुहअ सुहावेसि अम्ह हिअआई। णिक्कइअवाणुरत्तो सि जाण का णिन्वुदी ताणं ॥ (दाक्षिण्येनाप्यायन् सुभग सुखयस्यस्माकं हृदयानि । निष्कतवानुरक्त्तोऽसि यासां का निर्वृतिस्तासाम् ॥) -GSI.85
SR No.006959
Book TitlePrakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV M Kulkarni
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1988
Total Pages790
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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