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Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
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77) Jaha gambhiro......
(p. 331, v. 959) जह गंभीरो जह रयणनिभरो जह य निम्मलच्छाओ। ता किं विहिणा सो सरसवाणिओ जलनिही न कओ॥ (यथा गम्भीरो यथा रत्ननिर्भरो यथा च निर्मलच्छायः। तत् किं विधिना स सरस-पानीयो (वाणीको)जलनिधिर्न कृतः ॥)
-Cited earlier in KP X.v. 573 (p. 760)
The reading 'gahiro', found in KP, renders the first part of the first half of this gatha metrically defective. .
78)
Ahinavamanahara......
(p. 335,v. 970) अहिणव-मणहर-विरइय-वलय-विहूसा विहाइ नववहुआ। कुंदलय व्व समुप्फुल्लगुच्छ-परिलीण-भमर-गणा ॥ (अभिनव-मनोहर-विरचित-वलय-विभूषा विभाति नव-वधुका( = वधूः)। कुन्द लतेव समुत्फुल्ल-गुच्छ-परिलीन-भ्रमर-गणाः॥)
-Cited earlier in SK I. v. 37
79) Samhayacakkayajua......
(p. 335, v. 971) संहयचक्कायजुआ विअसिअ-कमला मुणालसंछन्ना। वावी वहु व्व रोयणविलित्तथणया सुहावेइ ॥ (संहत-चक्रवाक-युगा विकसित-कमला मृणाल-संछन्ना। वापी. वधूरिव रोचन-विलिप्त-स्तना सुखयति ॥)
--Cited earlier in SK I. v. 36