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Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
323) Amaamaa gaanasehara......
(p. 675, v. 337) अमअमअ गअणसेहर रअणी-मुह-तिलअ चंद दे छिवसु । छित्तो जेहि पिअअमो ममं पि तेहिं चिअ करेहि ॥ (अमृतमय गगनशेखर रजजी-मुख-तिलक चन्द्र हे प्रार्थये स्पृश। स्पृष्टो यैः प्रियतमो मामपि तैरेव करैः ॥)
-GS I. 16
324) Tuha virahujjagarao... ..
(p. 675, v. 338) तुह विरहुज्जागरओ सिविणे वि ण देइ ईसण-सुहाई। वाहेण जहा (? पहा) लोअण-विणोअणं पि से विहअं(?-विणोअणं) से हरं तं पि ॥ (तव विरहोज्जागरकः स्वप्तेऽपि न ददाति दर्शन-सुखानि । बाष्पेण यथा (? पथा)लोकन-विनोदनं तस्या हतं तदपि ॥)
-GS V. 87
Note : The emendation suggested above is in accordance with the GS.
325) Ai-kovana vi sasu......
(p. 675, v. 339) अइकोवणा वि सासू रोआविआ (? रुआविआ)गअवईअ सोण्हाए । पाअ-पडणोणआए दोसु वि गलिएसु वलएसु ॥ (अतिकोपनापि श्वश्रू रोदिता गतपतिकया (%3D प्रोषितपतिकया) स्नुषया । पाद-पतनावनतया द्वयोरपि गलितयोर्वलययोः ॥).
-GS V. 93
326)
Asamatto vi samappai......
(p. 675, v. 340) असमत्तो वि समप्पइ अपरिग्गहिअ-लहुओ पर-गुणालावो । तस्स पिआ-पडिवड्डा (? पडिबद्धा) ण समप्पइ रइसुहा समत्ता वि कहा ॥ (असमाप्तोऽपि समाप्यतेऽपरिगृहीत-लघुकः परगुणालापः । तस्य प्रिया-प्रतिबद्धा न समाप्यते रतिसुखा समाप्तापि कथा ॥)
327) Agania-sesa-juana......
(p. 676, v. 341) अगणिअ-सेस-जुआणा बालअ वोलीण-लोअ-मज्जाआ। अह सा भमइ दिसामुह-पसारिअच्छी तुह कएण ॥ (अगणित-शेष-युवजना बालक व्यतिक्रान्त-लोक-मर्यादा । अथ सा भमति दिशामुख-प्रसारिताक्षी तव कृते ॥)
-GS I. 57
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