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________________ 404 Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics 313) Navi taha anālavamti... .. (p. 671, v. 325) णवि तह अणालवंती हिअअं दूमेइ माणिणी अहिअं। जह दूर-विभि अ-गरुअ-रोस-मज्झत्थ-भणिएहि ॥ (नापि तथानालपन्ती हृदयं दुनोति मानिनी अधिकम् । यथा दूर-विजृम्मित-गु रुक-रोष-मध्यस्थ-भणितैः ॥) -GS VI. 64 314) Diahe diahe susai...... (p. 672, v. 326) दिअहे दिअहे सूसइ संकेअअ-भंग-वडिआसंका।। आपंडुरोव ण (?आपंड्रोणअ)-मही कलमेण समं कलम-गोवी ॥ (दिवसे दिवसे शुष्यति संकेतक-भङग-वधिताशङ्का । आपाण्डुरावनत-मुखी कलमेन समं कलम-गोपी ॥) -GS VII. 91 . . This gatha is cited in Alankārakaustubha (p. 330) as an example of — Sahokti'.. 315) Jai hosi na tassa pia.. .... ___(p. 672, v. 327) जइ होसि ण तस्स पिआ अणुदिअहं णीसहेहि अंहिं । । णव-सअ-पीअ-पेऊसमंत (?मत्त-पाडि व किं सवसि ॥ (यदि भवसि न तस्य प्रियानुदिवसं निःसहैरङ्गः। नव-सूत-पीत-पीयूष-मत्त-महिषी-वत्सिकेव कि स्वपिषि ॥) -GS I. 65 316) Addamsanena puttaa...... (p. 672, v. 328) असणेण पुत्तअ सुट्ठ वि णेहाणुबंध-गहिआइं/घडिआई। हत्थउड-पाणिआई व कालेण गलंति पेम्माई ॥ (अदर्शनेन पुत्रक सुष्ठ्वपि स्नेहानुबंध-गृहीतानि/घटितानि । हस्त-पुट/-पानीयानीव कालेन गलन्ति प्रेमाणि ॥) -GS III. 36 317) Jaha jaha jara-parinao...... ___ (p. 673, v. 329) जह जह जरा-परिणओ होइ पई दुग्गओ विरूओ वि। कुलपालिआइ/कुलवालिआणं तह तह अहिअअरं वल्लहो होइ॥ (यथा यथा जरा-परिणतो भवति पतिर्दुगतो विरूपोऽपि । कुलपालिकायाः/कुलपालिकानां तथा तथाधिकतरं वल्लभो भवति॥) . -GS III. 93
SR No.006959
Book TitlePrakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV M Kulkarni
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1988
Total Pages790
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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