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________________ Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics 381 202) Loo jurai jurau...... (p. 621, v. 167) लोओ जूरइ जूरउ वअणिज्ज होइ होउ तं णाम । एहि णिमज्जसु पासे पुप्फवइ ण एइ मे गिद्दा ॥ (लोकः खिद्यते खिद्यतु वचनीयं भवति भवतु तन्नाम। एहि निमज्ज पार्वे पुष्पवति नैति मे निद्रा ॥) -GS VI. 29 203) Tava ccia rai-samae...... (p. 621, v. 168) ताव च्चिअ रइ-समए महिलाणं विन्भमा विराअंति । जाव ण कुवलअ-दल-सच्छहाइँ मउलेति णअणाई॥ (तावदेव रति-समये महिलानां विभ्रमा विराजन्ते। यावन्न कुवलय-दल-सच्छायानि मुकुलीभवन्ति नयनानि ॥) 204) Alia-pasutta-vinimiliaccha....... (p. 621, v. 169) अलिअ-पसुत्त-विणिमीलिअच्छ दे सुहअ मज्झ ओआसं । गंड-परिउंबणापुलइअंग ण पुणो चिराइस्सं ॥ (अलीक-प्रसुप्त-विनिमीलिताक्ष प्रार्थये देहि सुभग ममावकाशम् । गण्ड-परिचुम्बना-पुलकिताङ न पुनश्चिरयिष्यामि ॥) -GS I. 20 205) Jao so vi.vilakkho...... (p. 621, v. 170) जाओ सो वि विलक्खो मए वि हसिऊण गाढमुवगढो। पढमोसरिअस्स णिसणस्स गंठिं विमग्गंतो ॥ (जातः सोऽपि विलक्षो मयापि हसित्वा गाढमुपगूढः । प्रथमापसृतस्य निवसनस्य ग्रन्थि विमार्गयमाणः॥) -GSIV. 51 (p. 622, v. 171) 206) Ekkam paharuvvinnam...... एक्कं पहस्वायं हत्थं मुह-मारुएण वीअंतो। सो वि हसंतीए मए गहिओ बीएण कंठम्मि॥ (एक प्रहार-पीडितं हस्तं मुख-मारुतेन वीजयन् । सोऽपि हसन्त्या मया गृहीतो द्वितीयेन कण्ठे ॥ -GSI.86
SR No.006959
Book TitlePrakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV M Kulkarni
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1988
Total Pages790
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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