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Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
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127)
Urapelliavaikari .....
(p. 451, v. 84) उर-पेल्लिअ-वइ-कारिल्लआईं उच्चेसि दइअ-वच्छलिए। कंटअ-विलिहिअ-पीणुण्णअ-स्थणि उत्तम्मसु एत्ताहे ॥ (उरःप्रेरित-पीडित-वृति-कारवेल्ली-फलानि उच्चिनोषि दयित-वत्सले । कण्टक-विलिखित-पीनोन्नत-स्तनि उत्ताम्येदानीम् ॥)
This gatha is later cited by Narendrapabha Suri in his Alamkaramahodadhi (p. 259). He, however, wrongly reads 'vara' for 'vai' and tthani hammae tae' for tthani uttammasu ettahe'.
128) Kassa va na hoi roso......
(p. 452, v. 85) कस्स व ण होइ रोसो दठूण पिआइ सव्वणं अहरं। स-भमर-पउम-ग्याइणि वारिअवामे सहसु एण्हि ॥ (कस्य वा न भवति रोषो दृष्ट्वा प्रियायाः सव्रणमधरम् । स-भ्रमर-पद्माघ्रायिणि/-पद्माघ्राणशीले वारित-वामे सहस्वेदानीम् ॥)
___ -Cf. GS (W) 886
Weber reads -kamalagghairi' for paümagghaini'
129) Dura-padibaddha-rāe......
(p. 453, v. 86) दूर-पडिबद्ध-राए अवऊहंतम्मि दिणअरे अवरदिसं । असहंति व्व किलिम्मइ पिअअम-पच्चक्ख-दूसणं दिणलच्छी ॥ (दूर-प्रतिबद्ध-रागे ऽ वगूहमाने दिनकरे ऽ पर-दिशम् । असहमानेव क्लाम्यति प्रियतम-प्रत्यक्ष-दूषणं दिनलक्ष्मीः ॥)
130) Vallahe lahu volantai......
(p. 453, v.87)
For this Apabhramsa verse vide Appendix-II.
131) Pallaviam via kara-pa......
(p. 456, v. 90) पल्लविअं विअ कर-पल्लवेहिँ पप्फुल्लिअं विअ (?व) णअहिं । फलिअं विअ पाण-पओहरेहिँ अज्जाएँ लावण्णं ॥ (पल्लवितमिव कर-पल्लवाभ्यां प्रफुल्लितमिव नयनाभ्याम् । फलितमिव पीनपयोधराभ्यामार्याला लावण्यम् ॥