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Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
49) Pattā a siharāhha......
(p. 240, v. 191) पत्ता अ सीभराहअ-धाउ-सिला-अल-णिसण्ण-राइअ-जलअं। सझं ओज्झर-पहसिअ-दरि-मुह-णिम्महिअ-वउल-मइरामोअं॥ (प्राप्ताश्च शीकराहत-धातुशिला-तल-निषण्ण-राजित-जलदम् ।। सां निर्झर-प्रहसित-दरी-मुख-निर्गत-बकुल-मदिरामोदम् ॥)
-Setu I. 56 50) Param jonha unha......
(p. 251, v. 223) परं जोण्हा उपहा गरल-सरिसो चंदण-रसो
खद-क्खारो हारो मलअ-पवणा देह-तवणा । मुणाली वाणाली जलदि अ जलद्दा तणुलदा
वरिट्ठा जं दिट्ठा कमल-णअणा सा सुवअणा ॥ (परं ज्योत्स्ना उष्णा गरल-सदृशश्चन्दनरसः
क्षत-क्षारो हारो मलय-पवना देह-तपनाः । मृणाली बाणाली ज्वलति च जलार्दा तनु लता वरिष्ठा यद् दृष्टा कमल-नयना सा सुवदना ॥)
-Karpüramañjari II. 11 51) Dhumai dhumakaluse......
__ (p. 253, v. 227) धूमाइ धूम-कलुसे जलइ जलंतारहंत-जीआ-बंधे। पडिरव-पडिउण्ण-दिसं रसइ रसंत-सिहरे धणुम्मि णहअलं ॥ (धूमायते धूमकलुषे ज्वलति ज्वलदारोहज्जीवाबन्धे । प्रतिरव-प्रतिपूर्ण-दिक रसति रसच्छिखरे धनुषि नभस्तलम् ॥)
-Setu V. 19 52) Uahissa jasena jasam......
(p. 287 v. 240) उअहिस्स जसेण जसं धीरं धीरेण गरुअआएँ वि गरुअं। रामो ठिइए वि ठिई भणइ रवेण अ रवं समुप्फुदंतो॥ (उदधेर्यशसा यशो धैर्य धैर्येण गुरुतयापि गुरुताम् । रामः स्थित्यापि स्थिति भणति रवेण च रवं समाक्रामन् ॥)
-Setu IV. 43 53) Cando kandappamittam.....
___(p. 287, v. 334) चंदो कंदप्पमित्तं विहरण-सहलो हारि-तारा-पबंधो
सच्छंदो वंदणिज्जो कुवलअ-दलणो संकरे मेलिकारी। कंदोदोल्लासलासी जअइ सिव-सिहा मंडणीभूद-खंडो
देता (? देंतो) जोण्हा-जलोहो विहिअ-णिअ-रई विन्भमाणं बलेण ॥