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________________ 300 Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics 1407) Taha tam si gad moham...... (p. 1136) तह तं सि गआ मोहं मुच्छागम-पडिअ-णीसह-णिसण्णं (विसण्णं)गी। रक्खस-माएँ (माअ)त्ति फुडं जाणंती जह इमं अहंपि विसण्णा ॥ (तथा त्वमसि गता मोहं मूर्छागम-पतित-निःसह-निषण्णा (विषण्णा)ङ्गी। राक्षसमायति स्फुटं जानती यथेदमहमपि विषण्णा ॥) ___-Setu XI. 97/96 (Calcutta edn) 1408) Tain avalaiibasu dhiran...... (p. 1136) तं अवलंबसु धीरं णासउ संपइ अमंगलं जाव इमं । मुणिअ-परमत्थ-लहुई अवहीरिअ-णिप्फला णिअत्तउ मा॥ (तदवलम्बस्व धैर्य नश्यतु संप्रत्यमङगलं यावदिदम् । ज्ञात-परमार्थलघ्वी अवधीरित-निष्फला निवर्ततां माया ॥) --Setu XI. 131/129 (Calcutta edn) 1409) Tihuanamalāhāram...... (p. 1137) तिहुअण-मूलाहारं विसढ-महिंद-पडिमुक्क-बूढ-रणधुरं । जाणती कीस तुमं तुलेसि सेस-पुरिसाणुमाणेण पई ॥ (त्रिभुवन-मूलाधारं विह्वल-महेन्द्र-प्रतिमुक्त-व्यूढ-रणधुरम् । । जानती कस्मात् त्वं तोलयसि शेष-पुरुषानुमानेन पतिम् ॥) . -Setu XI. 89/88 (Calcutta edn) 1410) Amilia-sāara-salila...... (p. 1137) अमिलिअ-साअर-सलिला अणह-ट्ठिअ-महिहरा अणुव्वत्त-अला।। रामस्स छिण्ण-पडिअं कह पत्तिअसि धरणी धरेइत्ति सिरं ॥ (अमिलित-सागर-सलिला अनघ-स्थित-मही धानुवृत्त-तला। रामस्य छिन्न-पतितं कथ प्रत्येषि धरणी धारयतीति शिरः ॥) -Setu XI. 90.89 (Calcutta eda) 1411) Utthesu muasu soain...... (p. 1137) उठेसु मुअसु सो पुस एअं वाह-मइलिअं थणवठें । सुणसु सउणे ण वट्टइ समराहिमुहे पइम्मि अंसुणिवाओ ॥ (उत्तिष्ठ मुञ्च शोकं प्रोञ्छ एतद् बाष्प-मलिनितं स्तन-पृष्ठम् । शृणु शकुने न वर्तते समराभिमुखे पत्यावश्रुनिपातः ॥ -Setu Xl. 124/122 (Calcutta edn) .
SR No.006959
Book TitlePrakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV M Kulkarni
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1988
Total Pages790
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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