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Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
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1402) Airde (? de ) rulu-tanao ( Aird a de rahuvai )...... (p. 1134)
अइरा दे रहु-तणओ (अइग अ दे रहुवई) तण्णाअंतग्गहत्थ-मउइअ-पम्हं । मोच्छिहि वेवंतंगुलिगुप्पंतुक्खित्त-विसम-भाअं वेणि ॥ (अचिरात् प्रार्थये रघुतनयः (अचिराच्च प्रार्थये रघुपतिः)आद्रीयमाणाग्रहस्तमुकुलित
पक्षमाम् । मोक्ष्यति वेपमानाङ्गलिगुप्यन्नुत्क्षिप्त-विषमभागं वेणीम् ॥)
- Setu XI. 126/124 (Calcutta edn)
1403) Mārua-modia-vidavam......
(p. 1135) मारुअ-मोडिअ-विडवं मिअंक-किरण-पडिमास-मउलिअ-कमलं । कह होइ राम-मरणे (पा. भे.-पडणे) इअ णिच्छाअं दसाणण-घरुज्जाणं ॥ (मारुत-मोटित-विटपं मृगाङ्क-किरण-प्रतिमर्ष-मुकुलित-कमलम् । कथं भवति राम-मरणे (पा. भे.-पतने) इति निच्छायं दशानन-गृहोद्यानम् ॥)
-Setu XI. 91/90 (Calcutta edn) 1404) Saala nisaarauri.......
(p. 1136) सअला णिसाअर-उरी धर-परिवाडि-सम-णीहरिअ-रुण्ण-रवा । एक्केण कआ कइणा कह होहिइ अणह-रक्खसं रहु-मरणं (पा. भे. पडणं) ॥ (सकला निशाचर-पुरी गृह-परिपाटि-सम-निर्हादित-रुदित-रवा। एकेन कृता कपिना कथं भविष्यत्यनघ-राक्षसं रघुमरणम् (पा. भे. पतनम्) ॥)
-Setu XI 122/120 (Calcutta edn)
(p. 1136)
1405) Kinva gna (?) kimti samasasiavve......
किं ति समाससिअव्वे मुज्झसि दहवअण-दप्प-भंगुप्फालं। पेच्छंती पमअ-वणं रामाणत्तिअर-पवअ-पव्विद्ध-दुमं ॥ (किमिति समाश्वसितव्ये मुह्यसि दशवदन-दर्प-भङ्गोत्फालम् । प्रेक्षमाणा प्रमद-वनं रामाज्ञप्तिकर-प्लवग-प्रविद्ध-द्रुमम् ॥)
-Setu XI. 95/94 (Calcutta edn)
1406) Valivaha-dittha-saram......
___(p. 1136) वालि-वह-दिट्ठ-सारं बाण-गलत्थिअ-समुद्द-दिण्ण-थल-वहं । रोहिअ-लंका-वल मा लहु पेच्छ राहवस्स भुअ-बलं ॥ (वालि-वध-दृष्ट-सारं बाण-गलहस्तित (? क्षिप्त)-समुद्र-दत्त-स्थलपथम् । रोधित-लङ्का-वलयं मा लघुकं प्रेक्षस्व राघवस्य भुजबलम् ॥)
-Setu XI. 128/126 (Calcutta edn)