SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 298 Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics 1397) Anusolaum (? Anusoium) na icchai...... __(p. 1133) अणुसोइउ ण इच्छइ ण देइ अंगम्मि सा परम्मि व पहरं । वाहं मुअइ ण रुंभइ मरिअव्वे लद्ध-पच्चों से हिअअं॥ (अनुशोचितुं नेच्छति न दात्यङ्ग सा परस्मिन्निव प्रहारम् । बाष्पं मुञ्चति न रुणद्धि मर्तव्ये लब्ध-प्रत्ययमस्या हृदयम् ॥) -Setu XI. 117/115 (Calcutta edn) 1398) Lakkhijjanta-visaa...... (p. 1134) लक्खिज्जत-विसाआ अब्भहिउम्मिल्ल-णिच्चल-णअणा। राम-सिर-बद्ध-लक्खा धुव्वइ बाहेण से ण रुंभइ दिट्ठी ॥ (लक्ष्यमाण-विषादाभ्यधिकोन्मीलन्निश्चल-स्थित-नयना । राम-शिरो-बद्ध-लक्ष्या धाव्यते बाष्पेणास्या न रुध्यते दृष्टिः ॥) -Setu XI. 112/110 (Calcutta edn) 1399) To vilavia-nitthāmam.... (p. 1134) तो विल विअ-णित्थामं गलत-हिअअ-परिसुण्ण-लोअण-जुअलं । महुरं आसासंती हत्थुण्णामिअ-मुही भणइ णं तिअडा॥ (ततो विलपित-निस्थामानं गलद्-हृदय-परिशून्य-लोचन-युगलाम् । मधुरमाश्वासयन्ती हस्तोन्नामितमुखी भणत्येनां त्रिजटा ॥) , -Setu XI. 87/86 (Calcutta edn) 1400) Maruasu pusasu baham....... (p. 1134) मा रुअसु पुससु बाहं अवऊहेऊण (पा. भे. उअऊहेऊण) अंसपरिअत्तमुहं । संभरिअ विरह-दुक्खं रोत्तव्वं ते (पा. भे. दे) पुणो पइस्स वि अंके । (मा रोदीः प्रोञ्छ बाष्पम् अवगृह्य (पा. भे. उपगूह्य)अंस-परिवृत्त-मुखम् । संस्मृत्य विरह-दुःखं रुदितव्यं (? रोदितव्यं) ते (पा. भे.प्रार्थये)पुनः पत्युरप्यके ॥) -Setu XI. 92/91 (Calcutta edn) 1401) Aira damsihisi dacchihisi tumami...... (p. 1134) अइरा दंसिहिसि/दच्छिहिसि तुमं तुह विरहोलुग्ग-पंडुरं मुह-च्छाअं । गअ-रोस-सुहालोअं ओआरिअ-चाव-णिव्वुअं दासरहिं ॥ (अचिराद् द्रक्ष्यसि त्वं तव विरहावरुग्ण-पाण्डुरं मुख-च्छायम् । गत-रोष-सुखालोकमवतारितचापनिवृतं दाशरथिम् ॥) -Setu XI. 93/92 (Calcutta edn) .
SR No.006959
Book TitlePrakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV M Kulkarni
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1988
Total Pages790
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy