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Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
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1072) Asamatto visaiappai......
(p. 1006) असमत्तो वि समप्पइ अपरिग्गहिअ-लहुओ परगुणालाओ। तस्स पिआ-पडिबद्धा ण समप्पइ रइसुहासमत्ता वि कहा ॥ (असमाप्तोऽपि समाप्यतेऽपरिगृहीत-लघुकः परगुणालापः । तस्य प्रिया-प्रतिवद्धा न समाप्यते रति सुखासमात्पाऽपि कथा ॥)
-Cf. SK V 340, p. 675-76.
1073) ...Vaacitiam (?)......
(p. 1006)
This verse / gātha is corrupt and therefore, obscure.
1074) Samvadahia samtose......
(p. 1006) संवड्डिअ-संतोसा फुरंत-कोत्थुह-मणिप्पहा-संवलिआ। विउणिअ-मण-संतावा जाआ सविसेस-दूसहा ससिकिरणा ॥ (संवधित-संतोषाः स्फुरत्कौस्तुभ-मणि-प्रभा-संवलिताः । द्विगुणित-मनस्संतापा जाता सविशेष-दुःसहाः शशि-किरणाः ॥)
-Harivijaye. 1075) Na sahai kalakkhevam......
(p. 1006) ण सहइ कालक्खेवं मळिओ ? चलिओ) गंतुं ... ... ।
तस्स गमणारंभो ॥ (न सहते कालक्षेपं चलितो गन्तुं ... ... ।
तस्य गमनारम्भः ॥)
...
Note : Only the first quarter agrees with Lilavai No. 567..
1076) Jaha jaha tie bhavanam.......
(p. 1006) जह जह तीए भवणं पावइ कह (? कअ-)धू(? दू) सहावराहविलक्खो। तह तह से अहिअअहर (? अहिअअरं) हिअअं रुम्मि (दारुणाम्मि) संसअम्मि णिसण्णं ॥ (यथा यथा तस्वा भवनं प्राप्नोति कृत-दुःसहापराधविलक्षः ।
तथा तथा तस्याधिकतरं हृदयं दारुणे संशये निषण्णम् ॥) 1077) Tie dansavanaamha (?)......
(p. 1007)
For this verse from Harivijaya vide S. No. (196) supra.
1078)
Navitaha analamvanti......
(p. 1007)
This gātha (GS VI. 64) is already cited on p. 631. Vide S. No. (332) supra.