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Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
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1009) Taha bamdhanaanurāe...
(p. 990) तह बंधण-अणुराए, तह संमोह-विअलंत-विसमालावे। ते च्चि तीऍ मअ-गुणा, रोस त्ति ठिआ पसाअ-विमुहम्मि मुहे ॥ (तथा बन्धनानुरागान् तथा संमोह-विगलद्-विषमालापान् । त एव तस्या मदगुणा रोष इति स्थिताः प्रसाद-विमुखे मुखे ॥)
(p. 990)
1010) Nayana-paholira-baha......
णअण-पहोलिर-बाह-प्फुरिआहरमेत्त-णीसहं च अणीसं । दूमेइ घर-गआएँ तीसे रोस-विरमालण-परं हिअअं॥ (नयन-प्रघूर्णनशील-बाष्प-स्फुरिताधर-मात्र-निःसहञ्चानिशम् । दुनोति गृहगतायास्तस्या रोष-गोपन-परं हृदयम् ॥)
1011) Vaoraddapanavam (?)......
(p. 990)
This verse / gātha is corrupt and therefore, obscure.
(p. 991)
1012) Jo tie ahararao......
जो तीए अहर-राओ रत्ति उव्वासिओ पिअअमेण । सो चिअ दोसइ गोसे सवत्ति-णअणेसु संकंतो॥ (यस्तस्या अधर-रागो रात्रावुद्वासितः प्रियतमेन । स एव दृश्यते प्रभाते सपत्नी-नयनेषु संक्रान्तः ॥)
-GS II. 6
• 1013) Kuvia a saccabhāmā......
(p. 991)
This verse ( from Harivijaya) is already cited on p. 585, p. 812 and p. 860 above. Vide S. No. (220) supra.
1014) Toniniapemmapadi (?)......
(p. 991)
This verse / gātha is corrupt and therefore, obscure.
1015)
Nisasāgamadhusaro (?)......
(p. 991)
This verse / gatha is corrupt and therefore, obscure.
1016)
Vesenanaddhidukkha (?)......
(p. 992)
This verse/gatha is corrupt and, therefore, obscure.